आपाधापी भरी ज़िन्दगी में अकेली सफ़र कर रही हूँ मैं,
लेकर ग़म को संग अपने, खुशियों से आज गले मिल रही हूँ मैं।
बंजारन की जात है, सही मायने में वज़ूद संभाल रही हूँ मैं,
ख़ामोश निगाहों से देखती सबको, मुस्कराहट से मिल रही हूँ मैं।
मेरे गमगीन ज़िन्दगी में ठिकाने की तलाश कर रही हूँ मैं,
सोलह श्रृंगार कर टूटी हुई सी दिखती, पर खिल रही हूँ मैं।
समझो ना मुझे तुम बेबस लाचार, सशक्त लड़ रही हूँ मैं,
शक्ति की स्वरुपिणी हूँ, संतान को गोद में उठा चल रही हूँ मैं।
दो वक्त की रोटी को आसमां के नीचे आशियां बुन रही हूँ मैं,
खानाबदोशी का खिताब लिए जिंदगी को संभाल रही हूँ मैं।
अकेलापन को कर साथी सहेली, गुफ्तगू उससे कर रही हूँ मैं,
भरी महफ़िल में तन्हाई का दामन थामे, सबके लिए संगदिल रही हूँ मैं।
तेरे बगैर ज़िन्दगी को जीने में मज़ा दुसरा है, जान रही हूँ मैं,
फुरकत में बीते लम्हों को तन्हाई संग बुनकर, ख़ुद से मिल रही हूँ मैं।
बेरहम चेहरा दिखाई दिए चारों तरफ़, दश्त-ए-रूसवाई में चल रही हूँ मैं,
अकेली ही सही, ख़ुद से मोहब्बत जता, ख़ुद की महफ़िल रही हूँ मैं।
नागिन बनकर डसती है तन्हाई, पर सुकूँ से मिल रही हूँ मैं,
नवाज़े ख़ुद को अकेलेपन की पनाह में, अपने दिल से मिल रही हूँ मैं।