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ज़िन्दगी दिखाता है रंग कई,
किताबों की दुनिया अनोखी है,
पढ़ लिख कर बनना है नवाब,
ये बात गुरूजनों से सिखी है।
सीखाया है कई किस्से कहानियाँ,
कुछ अन्तर्मन में बवाल आया है।
जाँचकर सब किताबों में अक्सर
ख़ुद को डूबोया हमने पाया है।
कहने को आसानी से शब्द मिलते,
समझना कभी कभी होता दुश्वार है।
ज्ञान दर्पण बनाकर रखा है जिसे,
आज लग राहा बोझ का भरमार है।
जीवन मंत्र है कठिन लगता हमें,
पर आसानी से मंत्र जप कर सकते हैं।
शब्दों को हथियार बनाकर पन्नों में
जबरन बोझा किताबों का हम ढोते हैं।
अच्छे बनने की कोशिश में लगे रहते,
पसंद-नापसंद का सवाल हमसे ना पुछते हैं।
प्रतियोगिता के कतार में खड़ा करते,
विषय पर पारंगमता का चर्चा ना करते हैं।
बच्चों से लेकर जवान शहीद हुए जाए
यह अक्षरों की सरहदों से जब लड़ते हैं।
समझो जरा अब अभिभावकों व्यथा बच्चों की,
किताबों की बोझ के तले ज़िन्दगी रौंदे जाते हैं।
जीयो और जीने दो, शर्मिंदा ना करेंगे,
हटा दो पुस्तकों का भार, नाम रोशन करेंगे।
इच्छा से ही सही रास्ता चुन कर चलेंगे,
बोझ ढोएंगे ख़ुद का, हम ना किसी पर बोझ बनेंगे।