संसार की जन्मदात्री, बेहद सरल और अनोखी होती यह नारी है,
सदियों से यह नारी, सर्वंसहा धरित्री सी सजाई गई सुंदर कारीगरी है।
हर महीने मनाए माहवारी का त्यौहार, जो बड़े कष्टों से भी भारी है,
संतान को जन्म देकर मातृत्व सुख समृद्धि में पूर्णता प्राप्त करी है।
धारक है नए जीवन की, अपनी कोख में अंकुर को नौ महीने से धरी है,
अजस्र असीमित प्रसव कष्ट सहकर एक नूतनबाला की सिंचाई करी है।
विडम्बना उसकी हृदय की कोई ना समझ सके, उसकी ऐसी लाचारी है,
संसार की नियमों के राजनीति का खंडन ना कर, उठाई वो जिम्मेदारी है।
प्रसव कष्ट से कष्ट नहीँ कोई, एक साथ जैसे सैंकड़ों हड्डियाँ चूरी है,
माहवारी की प्रक्रिया से गुजर, ममत्व धारण करने वाली वो परी है।
कामाक्षा देवी की रजस्वला को त्योहार बनाकर सब बने संस्कारी है,
समानता का बहाना बना, गृह महिलाओं के संग सब बने व्यभिचारी है।
भगवान की बक्शी नेकी है, जन्म दात्री के रूप में परिचय की अधिकारी है,
औरत के लिए माहवारी कोई अभिशाप नहीं, मातृत्व की अभिमान संसारी है।
देखे संसार उसको हिन दृष्टि से, बना यह जग सदा क्यूँ व्यभिचारी है,
वो पाँच दिन की वह अछूत कैदी है, वज़ूद उसका जैसे कोई भिखारी है।
अनाचार का चिह्न और प्रवृत्ति, दिखाए समाज कितना अत्याचारी है,
सर्वंसहा नारी, ले माहवारी अपने में परिपूर्ण और परिपक्वता से भरी है।
सम्मान की पात्री है वह, सृष्टिर्मधुरा संसार की तो यह जन्मधात्री है,
अपनी वज़ूद की त्यौहार हर माह वो माहवारी के कष्ट सहकर गुज़ारी है।
विनती करते संसार के ठेकेदारों से, ये रजस्वला मासिक चर्चा है, ना कोई बिमारी है,
तुच्छ भावना से ना देखो उसे, माहवारी नारी का गुरूर है, जिसके सब आभारी है।