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मन है दर्पण, जीवन की सच्चाई का,
सही मार्ग दिखाए जब थामे हाथ अच्छाई का।
क्रूरता और मिथ्या दृष्टि कभी भी ना भाए,
मन ही अक्स है हमारे ख़ुद के ही परछाई का।।
आँखों में पट्टी बाँध कर कश्ती गर बहाया,
ना नाप पाएंगे गहराई हम जीवन समंदर का।
मिज़ाज -ए-जीस्त को बुलंद कर बह चल,
पट्टी निकाल कर देख, रूख़ मोड़ बवंडर का।।
कहती है दुनिया, हसीन है हर मंज़र इसकी,
दिल में प्यार लिए खुबसूरत ख़्वाब बुन ज़िन्दगी का।
फ़लसफ़ा-ए-ज़िन्दगी लिख जाना है आज़,
मन में सुंदरता भर, जीवन में मुकाम हो बंदगी का।।
जो सोच, मन में समाए, प्रतिबिंब सामने आए,
अच्छाई का साथ सच्चाई का, छल का साथ बूराई का।
ऐनक हो गर नीली, तो दुनिया भी निला दिखाई दे,
सुंदरता को अक्षुण्ण बनाए रखो, साथ मिले ख़ुदाई का।।
सोच-समझ सही गर हो मगज़ में, जीवन बिते सही,
प्रेम भाव से अभिभूत हो सब मन, धाम हो सच्चाई का,
मन में गर बोए बीज नफ़रत का, तोहीन मिले हर पल,
बुलावा देते मुश्किलों का साथ लिए कठिनाइयों का।।
अन्तर्मन की सुंदरता बहुत है सबसे जरूरी सदा,
मोहब्बत में भीगे हर लम्हा, साथ मिले पाकिज़गी का।
जैसी हो नज़र, नज़रिया भी वैसी हो जाती है सदा,
बुराई का दामन थामोगे तो, साथ मिले दरिंदगी का।।
निर्मल निष्पाप मन में भर लो स्नेह का अंबार,
दुनिया बने महकती बगिया, जैसे आंगन हो चन्दन का।
नफ़रत से पेश आओ गर, मिले ज्यादा तोहमत,
हर लम्हा बहुत रूलाए, झोली में भरता काँटा क्रंदन का।।
सीरत जुड़ी है मन के भाव से, मुख ही है आईना,
मन में प्यार समाओ गर, बहुगुणित बरसात हो आनंद का।
मन सुंदर तो जग सुंदर, देखो सबको ही प्रेम से,
काँटें भी ना चुभें, जब मन में विराजमान हो परमानंद का।।