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प्रेम का फुहार तो बरसे सब पर, बिन पुछे जात-पात,
ना देखे यह लिंग और संप्रदाय, बस जाने पीरत यात।
"तुम" ना रहो "तुम", "मैं" ना रहे "मैं", बस "हम" ज्ञात,
प्रेम परिभाषा समाज से ऊपर, निभाए यह जन्म सात।
सबको नज़र आए बेतुकी हरकतों का अनचाहा साथ,
जीने दो उनको भी, बिन बनाए गलत मनसूबा-ए-हालात।
समलैंगिकता कोई ज़ुर्म नहीँ, ना मानो इनको हीन जात,
प्यार सद्भावना मन में निहित, मजबूर हैं इनके ज़ज़्बात।
दबाकर रखे कल्ब-ए-ग़म को सीने में ना बोले कुछ बात,
ख़ुदग़र्ज़ ज़माने में चढ़कर शुली पे, ख़ुद से रहे वो अज्ञात।
विडम्बना हृदय का बने ना बहाना, ना हो कोई हृदयाघात,
सबकी सोच ख़ुदख़ुशी को मान अभिमान, दे जाए खैरात।
है वो भी इंसान, दिल में उमड़ते हैं ग्रंथीरस से ही ख़्यालात,
ज़ोर ना चले एहसासों पर, मोहब्बत की आग में झुलसते हालात।
ना है अछूत, ना है पापी, ना पात्र है वो असमाजिक जात,
दिल के आगे सब घुटने टेके, मनुष्य संग समग्र यह कायनात।
समाज के ठेकेदारों से है यह विनती, ना दुत्कारना हो अज्ञात,
साथ निभाना सदा इनका, इनके संग है प्रेम का सौगात।
इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर हो नाचते हैं, भूल सब घात प्रतिघात,
आसमां भी सराहे, सपनों को साकार करने चलें हाथ में डाले हाथ।