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देखते ही आया फ़िर एक सप्ताहांत है,
कुछ पल ख़ुद के साथ देता सुखांत है।
दफ़्तर में होता पांच दिन का काम,
फ़िर तो सबको सप्ताहांत से संभ्रांत है।
चारों प्रहर कर्म-क्षेत्र में विलीन प्रजाति,
जरूरी उसके लिए आराम भी एकांत है।
सोचकर देखो तो, किसके लिए लाभदायक,
सबसे बड़े ओहदे पर जो है, वही अशांत है।
कई तरतीब से बनाकर यूँ करते विश्राम,
समाज के नजरों में कामचोर वो दुर्दांत है।
जीवन के पगडंडियों में बदलता रूप सबका,
समय की सीमा उसके लिए ही बना सीमांत है।
बच्चों से लेकर बड़ों तक सुख का साथ है,
नए पकवानों संग लड़ाई, नारी को करे आक्रांत है।
शरीर चर्चा सब करे, विलासितापूर्ण जीवन में,
सप्ताहांत का आनंद ना उठाए, बहुत दृष्टांत है।
चलो बनाएं समाज नया, रीति रिवाज भी नई,
हाथ थामकर काम करें, मिले सभी को प्रशांत है।
एक नहीं, सब देह को उचित मुआवजा दे,
सप्ताहांत सबका है, यही उसका वृतांत है।