जितनी सरल और मत्वपूर्ण है होती ,रचना शब्द विश्वास की,
उतनी ही कठिन होती है जीवन में, परिभाषा शब्द विश्वास की।
जी हाँ ! भरोसा और विश्वास कभी दिखते नहीं लेकिन असम्भव को भी सम्भव बनाने की शक्ति रखते हैं।
विश्वास ही जीवन की वो चुनौती है जो समझ गया, समझो उसका बेडा पार हो गया । विश्वास उस तराज़ू की तरहं है जो हर समय ऊपर-नीचे होता ही रहता है अथवा डगमगाता ही रहता है , कोई विरले ही इसे रोकने में सफल हो पाते हैं।
विश्वास की परिभाषा को तिनके और कच्चे धागे से भी सिद्ध किया जा सकता है जैसे -
तिनके का सहारा और कच्चा-धागा दोनों देखने में जितने कोमल और कमज़ोर लगते हैं, स्वाभाव के उतने ही मज़बूत और अटूट होते हैं अतः इनकी विश्वास से तुलना करना बिल्कुल सटीक उतरता है।
इसका उदहारण त्रेता-युग से चला आ रहा है। प्रायः सभी जानते हैं कि श्री रामजी, सीताजी और लक्ष्मण जी के चौदह वर्ष के वनवास में सबसे भयंकर घटना माता सीता का दुष्ट रावण के द्वारा हरण कर लेना था। सीताजी ने अकेले होते हुए भी उसके महल में रहने से इंकार कर दिया था तथा बाहर वाटिका में ही अशोक वृक्ष के नीचे बैठीं रहती थीं। रावण उन्हें अपनाना चाहता था और प्रतिदिन वाटिका में जाकर उन्हें मनाने के लिए तरहं-तरहं के प्रपंच चलाता था ताकि वो अपनी सहमति दे दें। कभी -कभी तो अपने बल पर अभिमान करके उन्हें धमकाता भी था। तभी का प्रसंग है कि माता सीता को अपने प्रभु श्री राम पर अत्याधिक विश्वास था कि वो इस दुष्ट को मारकर मुझे छुड़ाने अवश्य आएंगे। इसी अपने विश्वास को सीता मां घांस के एक तिनके को उठाकर रावण को चुनौती देती थीं कि मुझ तक पहुँचने के लिए इस तिनके को तुम्हे पार करना होगा यही मेरी रक्षा करेगा और यही मेरा सहारा और विश्वास है। उस छोटे से तिनके में इतनी ताकत थी कि रावण उसे छूने अथवा पार करने तक की हिम्मत जुटा नहीं पाया।
इसी प्रकार रक्षा बंधन के पर्व पर आप सभी भाइयों की कलाई पर राखी बांधने के कच्चे-धागे से तो परिचित ही होंगे । देखने में तो घागा इतना कोमल होता है कि क्षणभर में उसे तोड़ा जा सकता है लेकिन जब आस्था और विश्वास उससे जुड़ जाते हैं तब वो अत्याधिक मज़बूत बन जाता है। कहने का तात्पर्य यह है की विश्वास जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अर्थ लिए हुए एक शब्द है जिसे कमाया जाता है और जो इज़्ज़त और ईमानदारी का प्रतीक है। छोटी सी राखी बाँध कर बहन स्वयं को सुरक्षित मानती है कि उसका भाई उसकी हर परिस्तिथि में रक्षा करेगा दूसरी ओर भाई भी स्वयं पर गर्व करता है कि वो हर सम्भव अपनी बहनों की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहेगा।
विश्वास अर्थात भरोसा होना, वो किसी भी भगवान पर, मनुष्य पर , पशु-पक्षी पर, वास्तु आदि पर हो सकता है, लेकिन इसको कमाना और निभाना उतना ही कठिन है जैसे कि हम सबका इस पृथ्वी पर जीना। विश्वास कोई ऐसी भावना नहीं जो एक बार मिल गई तो सदा ही पास रहने वाली है। पग-पग पर कहीं भी किसी का भी और किसी पर से कभी भी विश्वास उठ सकता है। यदि आपको पत्थर पर विश्वास है कि इसमें प्रभु का वास है तो है , लेकिन यह नहीं कि जब मनुष्य के मन की इच्छा पूर्ण न हुई तो विश्वास भी समाप्त।
बालक प्रह्लाद के जीवन का प्रसंग प्रसिद्ध है कि उसे ईश्वर पर अत्याधिक विश्वास था, हर प्रकार की परिस्थितियों का सामना प्रभु का नाम जपते-जपते सहज ही पार करता गया , एक समय ऐसा भी आया कि जब उसको गरम खम्बे से बाँध कर पूछा गया कि बता इस खम्बे में भी भगवान है क्या ? तब देखते ही देखते उसने जैसे ही हाँ कहा , तुरन्त ही नरसिंह भगवान सबके सामने प्रकट हो गए जिनका आधा शरीर इंसान का और आधा शरीर सिंह का था , प्रकट होकर उसके विश्वास को बनाए रखना, यह प्रमाणित करता है कि विश्वास जहां पत्थर को भी भगवान बना सकता है वहीँ अविशवास इंसान को भी पत्थर दिल बना सकता है।
भरोसे की पराकाष्ठा पर ही आज ये संसार खड़ा है। यह एक ऐसा बीज है कि यदि पड़ गया तो सारी दुनिया को ही हिला सकता है। विश्वास के बल पर किसी भी काम को पूरा किया जा सकता है। इसको पढ़ लेने , लिख लेने में तो क्षणभर ही लगता है लेकिन साबित करने में पूरी ज़िंदगी लग जाती है। यह भरोसा ही है जो रिश्तों को मधुर बनाने में सहायता करता है ताकि प्रेम पूर्वक जीवन निर्वाह किया जाये।
विश्वास की एक ही शर्त (आधार) है कि जिस कार्य को अपना लक्ष्य बना लिया, उसे निंरंतर करते रहना चाहिए, उसके फल की इच्छा अथवा चिंता का विचार मन में बिलकुल भी नहीं आना चाहिए।
विश्वास भाग्य में नहीं बल्कि अपनी शक्ति पर रखना ही आपके जीवन में वो सब कुछ दिला सकता है जो चाहिए।
विपरीत परिस्थितियों में भी तथ्यों पर आधारित विश्वास से विजय पा सकते हैं। आपको नीचे वर्णित एक सच्ची घटना से विश्वास का प्रमाण मिल जाएगा --
एक बार वियतनाम में अमेरिकन कैदियों को एकांतवास में ज़ंजीरों से पीटा जाता है। एक आत्महत्या करता है तो दूसरा कप्तान जेरी काफी छ: वर्ष बाद छूटने पर स्वस्थ व प्रसन्न हैं , उसके अनुसार,’ मैं सोचा करता था कि मनुष्य हर स्तर का अत्याचार झेल सकता है और मैं इसको प्रमाणित करना चाहता था। यह सच्ची घटना प्रमाणित करती है कि आत्महीनता का परिणाम असफलता, जबकि सकारात्मक्ता- विश्वास सफलता प्रदान करती है।
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इन प्रमाणों के उदाहरण यही प्रमाणित करते हैं कि हमारा मस्तिष्क वही करता है जो उसे कहा जाता है। जो हम मस्तिष्क में डालेंगे वही परिणाम निकलेंगे। डॉक्टर रोबर्ट पियरशेल ने उदाहरणों से सिद्ध किया है कि बीमारियां मन में समाई गंदे विचारों का बाहरी स्वरुप है। सफाई ,आध्यात्मिक, सकारात्मक विचारों से हो सकती है।
जीवन में विश्वास पाया जाता है जिसके लिए प्रत्येक क्षेत्र में कठिन तपस्या करनी पड़ती है , अरे! ! यह नहीं कि आपको कहीं ध्यान लगाकर बैठना है, वरन अपने तन, मन , विचारों, व्यवहार, ईमानदारी, विवेक, कर्मठता और स्वयं पर विश्वास करने की आव्यशकता होती है। एक भजन है न -
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो न ,
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूल कर भी कोई भूल हो न
अथार्त वर्णित सभी गुणों के होने पर ही आप स्वयं पर तथा दूसरों पर भरोसा कर सकते हो। अपने मन और मस्तिष्क को इन्ही के अनुरूप ढालना पड़ता है यही साधना है। कहते हैं न ' मन के हरे हार है , मन के जीते जीत '
विश्वास किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति में नीव के रूप में कार्य करता है , भले ही विश्वास होने से संघर्ष दूर नहीं होते हैं, लेकिन यह आपको अपनी चुनौतियों का सामना करने की ताकत देता है और उन्हें हिम्मत से स्वीकार कर नीचे नहीं गिरने देता।
महापुरुषों और संतों ने अपना जीवन मुख्यधारा और रूढ़ियों को चुनौती देते हुए ही जिया है। उन्होंने बड़ी-बड़ी लड़ाइयां जीतीं क्योकिं उन्हें स्वयं पर भरोसा था। एक डॉक्टर को अपनी क्षमताओं पर पूरा भरोसा होता है जो अपने मरीज़ों को ठीक करने की ताकत रखते हुए सफलता प्राप्त करता है।
स्वामी विवेकानंद का एक उदहारण है जिन्होंने लोगों को विस्वास की शक्ति का अभ्यास और प्रचार का उपयोग लोगों के सामने आने वाले अधिकांश दुखों से छुटकारा पाने के लिए किया।
मदर टेरेसा को मानवता और भाईचारे में विश्वास था - और नि:स्वार्थ भाव से गरीबों और बीमारों की सेवा करती रहीं.
स्वयं लोगों के अनुभवों में ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जो यह प्रदर्शित करते हैं कि विश्वास सफलता और जीवन की शक्ति और जननी है।
जीवन में यह आवयशक है कि विश्वास के कौन -कौन से पहलू हैं और किन-किन कसौटियों पर यह खरा उतरता है , तो आइये निम्मलिखित महापुरुषों द्वारा दिए गए प्रवचनों को पढ़ने और समझने का प्रयत्त्न करते हैं ; --
ईश्वर जो भी करता है आपके भले के लिए ही करता है लेकिन इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं कि वो आपकी हर इच्छा को पूर्ण करे और आपकी अपेक्षा के ही अनुरूप करे , यदि आपका उस पर से विश्वास उठ जाए इसका मतलब आप अपने स्वार्थ के लिए उसे भजते रहे और अटूट विश्वास नहीं था।
विश्वास अटूट होना चाहिए और यह किसी पर भी हो सकता है, इसको तराज़ू की तरहं तोलते रहने से यह भरोसे वाला नहीं रहता इसे केवल स्वार्थ की संज्ञा ही दी जा सकती है।