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बेटी की संसार में आने की तीव्र इच्छा रहती है, वह सुनकर घवरा जाती है -तो वह अपनी मां और संसार से सवाल पूछती है की मैं गर्भ में क्यों मारी जाती हूं? लेकिन मां कोई जवाब नहीं दे पाती है| वह नन्ही बच्ची अपना बताती है कि वह संसार में क्यों और क्या क्या करना चाहतीं हैं। इस कविता का मुख्य उद्देश्य यह है कि बेटी बचाओ।


घर की लक्ष्मी कही जाने वाली बेटी हूं,
फिर क्यों जन्म से पहले गर्भ में मारी जाती हूं ?
मां की कली, पापा की परी मिथ्या ही कहलायी जाती हूं ,
इतना क्यूं घवराते हो ,मां की मजबूती, पापा का गौरव बन जाऊंगी,
(मां) पहले मुझे नव संसार में आने तो दो।
माना लाखों है भू पर कुरुतियां,
भेदभाव, ऊंच-नीच और पाखण्डों की पोटलियां,
मैं इन तुच्छ को भी धूल चटाऊं, हार कर भी जीत जाऊंगी,
(मां) एक बार पृथ्वी पर कदम बढ़ाने तो दो,
फिर बेटी होने का फर्ज़ निभाने तो दो,
(मां) पहले नव संसार में आकर मुस्कुराने तो दो।।
कहीं तुम्हें डर तो नहीं, मैं शिक्षित होकर ज्ञानवान बन जाऊं,
तीर-तलवार पकड़कर धनुर्धर कहलाऊं,
संसार में आकर अमिट छाप छोड़ जाऊं,
पृथ्वी पर अपना नाम कमायाऊं,
कहीं तुम्हारे बेटे से आगे न निकल जाऊं,
(मां) पहले नव संसार में आकर चलने तो दो।।।
(तुम्हारे लिए) ये सच है, फूल-सी नाजूक कली हूं मैं,
पत्थरों (अच्छे खिलाड़ी) को भी मात दे जाऊं मैं,
किन्तु तुम्हारी शांति, प्रतिष्ठा, प्यार हेतु अपनी बलि चढ़ा जाऊं मैं,
मेरी बस एक चेष्टा है - खुला-आसमान , रंगीन- भूमि, हंसती-वस्तियों में चंहक जाऊं मैं,
अपने प्यार को अमर कर जाऊंगी मैं,
(मां) पहले मुझे नव संसार में आकर खिलने तो दो।।।।
ओस की बूंद की तरह कभी छोड़कर न जाऊंगी,
इस दुनियां को अपनी छोटी-सी आंखों से देखना चाहऊंगी।
तुम्हारी सभी दुःख-पीड़ा अपने कन्धों पर रख सदा के लिए खुशियों में बदल जाऊंगी,
संसार की सबसे अच्छी बेटी तुम्हारी कहलाऊंगी,
विनम्र प्रार्थना करती हूं मैं विचित्र, प्रमेपूर्ण , मानवता वाले संसार में (मां ) मुझे आने तो दो।।।।।

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