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बहुत समय लगा वो इश्क़ महल बनाने में
सोचा एक पल नहीं उसने बस्तियाँ जलाने में।

मैने तो चराग़ सिर्फ एक कमरे में जलाया
कम्बख़्त कर गया रोशनी पूरे आशियाने में।

मिल जाये खुदा तो उससे पूछ आना
आखिर कितना वक़्त लगा आग बुझाने में।

अब किस किस को बताऊ हक़ीक़त उस रात की
कह देता हूँ लग गई चिंगारी अंजाने में।

वो बात किसी और कि थी, माचिस किसी और की
तुम देख लो, मुझे कोई हर्ज नही वो रात भुलाने में।।

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