जरा कुछ पाने की चाहत में
सब कुछ गवा बैठा हूं
इस कदर टूटा हूं
की अब मोहब्बत से भी हार बैठा हूं
हां, में अधूरा इश्क पूरा कर बैठा हूं
ताउम्र जिसे पाना चाहा अब वो शक्स अच्छा नही लगता
ये कैसी रीत है दुनिया की
जिससे प्यार था उसी से नफरत कर बैठा हूं
जो जान हुआ करता था कभी
आज अपनी ही जान खुद से जुदा कर बैठा हूं
हां, में अधूरा इश्क पूरा कर बैठा हूं
ख्वाब सजाए थे इन आंखों ने जिसके लिए
वो इन आंखों से उतर गया
जो कभी धड़कनों में समाया था
आज टूटने के बाद सीसे की तरह वो जमीं पर बिखर गया
अब उसे समेठने का भी मन नहीं करता , क्यों
क्योंकि, में इन आंखों की रोशनी जो खो बैठा हूं
हां, में अधूरा इश्क पूरा कर बैठा हूं
लाखों में जिस एक शक्श को देखकर
ये दिल सिर्फ उसके लिए धड़कता था
उसने ऐसा खंजर मारा
की ये दिल धड़कना ही भूल गया
उसकी यादों में ऐसा भटका हूं
जैसे कोई मुसाफिर घर जाना भूल गया
मैं कितना खुदगर्ज निकला ,उस एक शक्श के लिए
अपना सब