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प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति

प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति समाज के विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न थी। वैदिक काल में महिलाओं को सम्मानित स्थान प्राप्त था। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और सामाजिक जीवन में सक्रिय भागीदारी का अधिकार था। इस समय महिलाएं वेदों की रचयिता भी थीं। लेकिन धीरे-धीरे, समाज में पुरुष प्रधानता बढ़ने लगी और महिलाओं की स्थिति कमजोर होती गई। प्राचीन काल में, महिलाओं की स्थिति को सामान्यतः पुरुषों की तुलना में निम्न माना जाता था। समाज में महिलाओं की भूमिका अधिकतर घरेलू कार्यों तक सीमित थी, और उनका मुख्य कार्य परिवार की देखभाल करना, बच्चों का पालन-पोषण करना, और घर का संचालन करना था। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और स्वतंत्र रूप से जीवन जीने के अवसर कम ही मिलते थे। विवाह के समय भी महिलाएं अपने पति के अधीन हो जाती थीं, और उनके जीवन का उद्देश्य अधिकतर पति, परिवार, और समाज की सेवा करना होता था।धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं में भी महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, मनुस्मृति जैसी प्राचीन ग्रंथों में महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाए गए थे, जिनमें उनकी स्वतंत्रता पर कई प्रकार के प्रतिबंध शामिल थे। कुछ ग्रंथों में महिलाओं को पूजा और धार्मिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाने से भी वंचित किया गया था।

मध्यकाल में महिलाओं की स्थिति

मध्यकाल आते-आते महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय हो गई। इस समय बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों ने महिलाओं के जीवन को कठिन बना दिया। उनके अधिकार छीन लिए गए और उन्हें केवल घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया गया। शिक्षा का अधिकार भी उनसे छिन गया। यह वह दौर था जब महिलाओं को केवल वस्तु के रूप में देखा जाने लगा और समाज में उनका योगदान नगण्य समझा गया। 

मध्यकालीन भारत में मुस्लिम शासकों का आगमन हुआ, जिनकी धार्मिक मान्यताएं इस्लाम पर आधारित थीं। हालाँकि इस्लाम में महिलाओं को कई अधिकार दिए गए थे, जैसे कि शिक्षा का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, और अपने पति से तलाक लेने का अधिकार। परंतु, इन अधिकारों का पालन करने का तरीका अक्सर स्थानीय परंपराओं और शासकों की व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता था।मध्यकाल में महिलाओं की स्थिति पर मुस्लिम शासकों की धार्मिक मान्यताओं का मिश्रित प्रभाव पड़ा। जबकि इस्लाम महिलाओं को कुछ हद तक सुरक्षा और अधिकार प्रदान करता था, लेकिन इस काल में महिलाओं के लिए कई प्रकार के सामाजिक प्रतिबंध भी लागू किए गए। पर्दा प्रथा (घूंघट/हिजाब) इस दौर में अधिक प्रचलित हो गई, और महिलाओं की स्वतंत्रता पर कई प्रकार के अंकुश लगाए गए।मध्यकाल में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अत्याचार की घटनाएं भी बढ़ीं। युद्ध के समय महिलाओं को लूटपाट और अपहरण का सामना करना पड़ता था। इसके अलावा, सती प्रथा जैसी कुरीतियों ने महिलाओं की स्थिति को और भी बदतर बना दिया। इस समय बलात्कार, दासता, और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं आम थीं, जो उनकी सामाजिक स्थिति को और भी कमजोर करती थीं।इस काल में महिलाओं के सुधार के लिए बहुत कम प्रयास किए गए। इसका मुख्य कारण सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं थीं, जो महिलाओं की स्थिति को सुधारने के बजाय और भी जटिल बनाती थीं। महिलाओं के खिलाफ हो रहे अन्याय को सुधारने के लिए कोई व्यापक आंदोलन या प्रयास नहीं किए गए। इसका परिणाम यह हुआ कि महिलाओं की स्थिति और भी कमजोर होती चली गई।

आधुनिक काल में महिलाओं की स्थिति

आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति एक जटिल और कई परतों वाली कहानी है, जिसमें सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक भेदभाव के साथ-साथ उनके साथ हुए शोषण की विभिन्न कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। औपनिवेशिक शासन के समय से ही महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता था। सामाजिक स्तर पर महिलाओं को पितृसत्तात्मक सोच के कारण घर की चारदीवारी में सीमित रखा गया। शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्रता के अधिकारों से उन्हें वंचित किया गया। महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का अवसर नहीं दिया गया, जिससे उनका शोषण और भी बढ़ गया।राजनीतिक रूप से, महिलाओं की भागीदारी बेहद सीमित थी। उन्हें सार्वजनिक जीवन में शामिल होने की अनुमति नहीं थी, और यदि वे राजनीतिक रूप से सक्रिय भी होती थीं, तो उनके योगदान को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। इसके अलावा, बाल विवाह, दहेज प्रथा, और सती जैसी कुरीतियाँ महिलाओं के लिए एक गंभीर चुनौती थीं। ये प्रथाएँ महिलाओं के सामाजिक और मानसिक शोषण का कारण बनती थीं और उनके जीवन को संकुचित कर देती थीं।

आधुनिक काल में, कुछ समाज सुधारकों और नेताओं ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और इसे समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा के लिए कार्य किया और भारत में महिलाओं की शिक्षा के महत्व को समझाया। महात्मा गांधी ने भी महिलाओं के अधिकारों के लिए आंदोलन किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान में कई प्रावधान किए।औपनिवेशिक शासन के दौरान, भारतीय समाज पर ब्रिटिश कानूनों का प्रभाव पड़ा, जिसने महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार किए। हालांकि, यह सुधार सतही थे और जमीनी स्तर पर महिलाओं की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया। औपनिवेशिक सत्ता ने भारतीय महिलाओं के अधिकारों को मान्यता दी, लेकिन उनकी स्थिति में कोई ठोस सुधार नहीं किया।

वर्तमान समय में, महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन यह सुधार पूर्ण नहीं है। महिलाओं को आज भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यद्यपि शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ी हैं, लेकिन आज भी लैंगिक असमानता मौजूद है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और शोषण की घटनाएं आज भी समाज में मौजूद हैं।आधुनिक भारतीय इतिहास में किए गए सुधारों के बावजूद, समाज में लैंगिक समानता का लक्ष्य अभी भी अधूरा है। महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए हमें और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। महिलाएं समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनके बिना समाज का समुचित विकास संभव नहीं है। हमें महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अवसर देने की आवश्यकता है ताकि वे अपनी पूरी क्षमता से समाज के विकास में योगदान कर सकें।

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वर्तमानमहिलाओं के साथ अत्याचार और शोषण

वर्तमान भारत में महिलाओं की स्थिति में कई सुधार हुए हैं, लेकिन आज भी महिलाओं को समाज में विभिन्न प्रकार के भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ता है। समाज, अर्थव्यवस्था, और राजनीति के विभिन्न पहलुओं में महिलाएं आज भी पिछड़ी हुई हैं, और इसके पीछे कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक कारण हैं। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर भेदभाव, और यौन उत्पीड़न जैसी समस्याएं आज भी गंभीर रूप से बनी हुई हैं।

सामाजिक दृष्टिकोण से, महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक बड़ी समस्या बनी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या में 15% की वृद्धि देखी गई। घरेलू हिंसा की घटनाएँ व्यापक हैं, और इनमें से कई घटनाओं की रिपोर्ट नहीं की जाती है। रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 30% महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिनमें से अधिकांश मामलों में न्याय नहीं मिल पाता। इसके अलावा, वृद्धावस्था में महिलाओं की स्थिति और भी अधिक दयनीय हो जाती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 20% वृद्ध महिलाएं अपने बच्चों द्वारा उपेक्षित की जाती हैं और कई मामलों में उन्हें घर से बाहर भी निकाल दिया जाता है।आर्थिक स्थिति की बात करें तो, महिलाओं की श्रमशक्ति में भागीदारी पुरुषों की तुलना में काफी कम है। विश्व बैंक की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं की श्रमशक्ति भागीदारी दर लगभग 21% है, जो कि वैश्विक औसत 48% से काफी कम है। कार्यस्थल पर महिलाओं को वेतन असमानता का भी सामना करना पड़ता है। समान कार्य के लिए, महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 20-30% तक कम वेतन मिलता है। इसके अलावा, अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा और अन्य अधिकारों से वंचित रखा जाता है, जिससे उनकी आर्थिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।

राजनीतिक क्षेत्र में, महिलाओं की भागीदारी में सुधार देखा गया है, लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है। 2024 के आम चुनावों में, लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी लगभग 14% थी, जो कि वैश्विक औसत 25% से काफी कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में, पंचायतों में महिलाओं की आरक्षण नीति के बावजूद, उनकी वास्तविक राजनीतिक शक्ति सीमित होती है। कई बार महिलाओं को महज 'नाममात्र' की नेता के रूप में रखा जाता है, जबकि असल फैसले उनके पुरुष रिश्तेदारों द्वारा लिए जाते हैं।महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न एक और गंभीर समस्या है। NCRB के अनुसार, 2022 में भारत में 32,000 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जो कि वास्तव में होने वाली घटनाओं की संख्या का केवल एक हिस्सा हो सकता है। इन मामलों में, अपराधियों को सजा दिलाने की दर भी बहुत कम है, जो कि न्याय प्रणाली की खामियों को दर्शाता है।

अंततः, यह स्पष्ट है कि भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक क्षेत्रों में महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्रदान करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि वे अपनी पूरी क्षमता के साथ समाज में योगदान दे सकें। आंकड़े और रिपोर्ट्स इस बात की ओर इशारा करती हैं कि हमें न केवल नीतियों को लागू करने की जरूरत है, बल्कि जमीनी स्तर पर भी बदलाव लाने की आवश्यकता है। महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए हमें समाज के प्रत्येक वर्ग को साथ लेकर चलना होगा और उन्हें वह सम्मान और अधिकार देने होंगे, जिसके वे हकदार हैं।

आज भी महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, यौन शोषण, रेप, और ब्लैकमेलिंग जैसी घटनाएं आम हैं। महिलाओं को आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर ब्लैकमेल किया जाता है, उनकी निजता का हनन किया जाता है। निर्भया कांड जैसी घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। एक युवती के साथ बर्बरता की हदें पार कर दी गई थीं, जिसने समाज को महिलाओं की सुरक्षा के प्रति सोचने पर मजबूर कर दिया।

हाल ही में बंगाल के एक मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर के साथ हुई घटना ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या महिलाएं आज भी सुरक्षित हैं? इस घटना ने यह साबित कर दिया कि समाज में आज भी महिलाएं असुरक्षित हैं, चाहे वे कितनी भी शिक्षित या सशक्त क्यों न हों।

निष्कर्ष

वर्तमान में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए हमें कई स्तरों पर कार्य करने की आवश्यकता है। इतिहास के विभिन्न चरणों में, महिलाओं के प्रति समाज की सोच और उनके अधिकारों को लेकर जो दृष्टिकोण रहा है, वह आज भी हमारे समाज में गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं। हालांकि, आधुनिक युग में जागरूकता बढ़ी है और कई सुधार किए गए हैं, फिर भी हमें समाज में स्थायी बदलाव लाने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। विभिन्न विद्वानों, विशेषज्ञों, और समाज सुधारकों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए हैं, जिनका पालन कर हम महिलाओं की स्थिति में सुधार ला सकते हैं।

महात्मा गांधी का मानना था कि महिलाओं को उनके अधिकार दिए बिना समाज का विकास अधूरा है। उन्होंने कहा था, "यदि आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं, तो आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं; लेकिन यदि आप एक महिला को शिक्षित करते हैं, तो आप एक परिवार, एक राष्ट्र को शिक्षित करते हैं।" गांधीजी ने महिलाओं की शिक्षा को प्राथमिकता दी, क्योंकि यह समाज के समग्र विकास के लिए आवश्यक है।डॉ. भीमराव आंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों को संविधान में सुरक्षित किया, और उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत करने पर जोर दिया। उनके अनुसार, महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत और प्रभावी कानूनी प्रणाली आवश्यक है।समाजशास्त्री इरावती कर्वे ने कहा था कि समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए सामाजिक ढांचे में बदलाव आवश्यक है। उन्होंने कहा था कि केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं है; समाज की मानसिकता को बदलना होगा। महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना होगा और इसके लिए हमें लड़कों और लड़कियों की परवरिश में समानता लानी होगी।नैन्सी फ्रेजर जैसी नारीवादी विचारकों का मानना है कि महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए हमें उनके श्रम के मूल्यांकन में बदलाव करना होगा। उनका तर्क है कि अनौपचारिक और घरेलू कार्यों को भी श्रम के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और इसके लिए महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।आर्थिक विशेषज्ञ अमर्त्य सेन का मानना है कि महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा है कि जब महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होंगी, तब ही वे अपने जीवन में स्वतंत्र निर्णय ले सकेंगी और समाज में समानता का अनुभव कर सकेंगी।

हमें वर्तमान में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

  1. शिक्षा का व्यापक विस्तार : महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। शिक्षा के बिना किसी भी प्रकार का सामाजिक सुधार संभव नहीं है। हमें बालिका शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए और उन्हें उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान करने चाहिए।
  2. कानूनी सुधार और सुरक्षा : महिलाओं के खिलाफ अपराधों के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति अपनानी चाहिए। यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, और अन्य अपराधों के मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अदालतें और संवेदनशील पुलिस तंत्र विकसित करने की जरूरत है।
  3. आर्थिक स्वतंत्रता : महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए। उन्हें स्वरोजगार और उद्यमिता के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकारी योजनाओं और वित्तीय सहायता की आवश्यकता है।
  4. समान वेतन और कार्यस्थल पर सुरक्षा : महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन मिलना चाहिए। कार्यस्थल पर उनके लिए सुरक्षित और सशक्त वातावरण तैयार करना चाहिए, जिससे वे बिना किसी भय के अपना योगदान दे सकें।
  5. मानसिकता में बदलाव : समाज की मानसिकता में बदलाव लाने के लिए जन जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा में ही लैंगिक समानता के मूल्यों को सिखाना चाहिए।
  6. सामाजिक सुरक्षा और सम्मान : वृद्ध महिलाओं और विधवाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को और मजबूत करना चाहिए, ताकि वे समाज में सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।

अंततः, यह स्पष्ट है कि महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए हमें समाज की मानसिकता में व्यापक बदलाव लाना होगा। कानून और नीतियाँ तब तक प्रभावी नहीं होंगी, जब तक समाज का दृष्टिकोण महिलाओं के प्रति सकारात्मक नहीं होगा। हमें एक ऐसा समाज बनाना है, जहाँ महिलाओं को केवल सम्मान ही नहीं, बल्कि उनके अधिकार भी मिलें। तभी हम एक समृद्ध और समान समाज की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

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संदर्भ सूची:

  • आरएस शर्मा रचित प्राचीन भारत का इतिहास (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस; चौदहवा हिंदी संस्करण) । 
  • सतीश चंद्र रचित मध्यकालीन इतिहास (ओरियंट ब्लैकस्वान पब्लिकेशन 2022) । 
  • एनसीईआरटी रिपोर्ट-  2021 2022 2023 2024.
  • The History of Feminism: Ancient to Modern written by Bonnie G. Smith published by Oxford University Press. 
  • The Second Sex written bt simone de Beauvoir Published by intage Books (English Translation).

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