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इस लेख के माध्यम से मैंने उस प्रश्न का जवाब ढूंढने की कोशिश की है जो हर वक्त हम अपने घर से बाहर जाने से पहले खुद से पूछते हैं "क्या मै खूबसूरत हैं"। इस प्रश्न का जवाब हम हमारे सामने रखें आईने से पूछने की बजाय उम्मीद करते हैं कि बाहर बैठे लोग हमें इसका जवाब देंगे। मेरा यहा आर्टिकल बस इसी खूबसूरती से जुड़े प्रश्न, खूबसूरती के पैमाने और खूबसूरती के यथार्थ मतलब को समझना है। यहां लिखी प्रत्येक बातें मेरे व्यक्तिगत विचार है। मैं आप सभी की आलोचना का स्वागत करती हूं तथा मुझे खुशी होगी अगर आप अपने विचार मुझसे साझा करें।

मैं आज 22 साल की हूं और जब भी मुझे बाहर जाना होता है तो मैं सबसे पहले आईना देखती हूं और आईना देखने के बाद मैं एक रेस में दौड़ने लग जाती हूं पर यह दौड़ बाकी किसी दूसरी रेस से काफी अलग है और इस दौड़ का फैसला हार या जीत से नहीं होता बल्कि इसका फैसला होता है या तो आपकी तारीफों से या फिर दुसरो की बताई हुई कमियों से। इस दौड़ में शरीर तो बेशक वैसा का वैसा रहता है पर न जाने क्यों मन थोड़ा थक सा जाता है। आईना जब मुझे मेरा वस्तविकता प्रतिबिंब दिखता है यह रेस उस पल से ही शुरू हो जाती है और मैं अपने आप को बदलने में या मेरी वस्तविकता को छिपाने मे लग जाती हु कभी मै अपने होठों और गालो को मेकप से लादने लगती हू तो कभी मेरे चेहरे में मौजूद उन दागों को छुपाने में लग जाती हू और कभी कभी तो अपने शरीर और अपनी कमर को दो इंच छोटे कपड़ो मे फिट करने लग जाती हू और उसके जैसा बनना चाहती हू जिसे लोगो ने सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा पसंद किया है। मैं बस ये कोशिश करने लग जाती हू वो चेहरा जो मेरे फोन की स्क्रीन के पीछे है बस वैसा हुबहु चेहरा मै खुद मे देख सकु। 

जब मैं बाहर गई तो बाहर मेरे दोस्त खड़े थे वह भी शायद इस रेस में थे कुछ की बेशक तारीफ़ हुई और कुछ को तोहफे के रूप में उनकी कमियां गिनाई गयी। जब मैं कॉलेज गई तो वहां भी सब बच्चे इसी रेस मे थे या यू कहु तो मेरी नजरे जहाँ तक जा सकती थी वहा तक बस लोग इसी दौड़ मे भागते हुए नज़र आये। अब लगा की वो वक्त अब आ गया है की मैं अपने आप से पूछूं की ये कैसी रेस है? क्या ये रेस खुद को खुश करने के लिए भागी जा रही है या दुसरो की नजरो मे खुद की खुबसुरती को दिखाने के लिए या दुसरो को नीचा दिखाने के लिए? खुद से पूछूं कि मेरे सामने जो लोग खड़े हैं उनको मैं खुबसुरती के किस पैदान पर रखु? और ये खूबसूरत क्या हैं, इसका मतलब क्या है, ये कहा से आई और इसके पैमाने क्या क्या हैं? क्या ये पैमाने सही हैं? क्या सुंदरता का दूसरा अर्थ दिखावा हैं या कुछ और?  यह खूबसूरती होती क्या है ?क्या खूबसूरती हमारा चेहरा है या खूबसूरती हमें महसूस होने वाली कोई भावना? क्या खूबसूरती एक चेहरे के साथ आती हैं या ये हमारे मन मे में अनुभव होने वाली कोई शांति? ये तो बस वो थोड़े से ही प्रश्न हैं जिनको मैं उस वक्त सोचने मे लगी थी ये लिस्ट इससे भी कई ज्यादा लंबी है जिसे यहाँ प्रस्तुत कर पाना उतना ही मुश्किल हैं जितना आकाश की सीमा को किसी लंबाई से मान पाना।

वर्तमान में हम जिसे खूबसूरती मानते हैं या जैसी खुबसूरती हम खुद के चेहरे पर उतरने की उम्मीद करते हैं उसे खूबसूरती के कई अलग-अलग पैमनो द्वारा मापा जाता हैं जैसे- रंग, कट काठी, नैन नक्शा, शारीरिक बनावट, बाल इत्यादि। इस खूबसूरती की परिभाषा ना किसी पुस्तक में लिखी है और ना ही किसी शास्त्रों में ही इसका वर्णन हुआ है और ना ही यह कोई प्राचीन काल से चली आ रही प्रथाओं का हिस्सा है और ना ही ये खूबसूरती के चयन का कोई आधारित तरीका है। जिस खूबसूरती के पैमाने को आज हम अपने समाज में देखते हैं उसे हमारे समाज में स्थापित करने का कार्य किया है हमारे टेलीविजन ने और आज के हमारे सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफार्म ने । जब मैंने खूबसूरती की परिभाषा पुस्तकों, ग्रंथो, गूगल आदि मध्यामो से पता करने की कोशिश की तो मुझे ज्ञान हुआ की खूबसूरती का अर्थ होता है सुंदरता, आकषर्कता, मनमोहकता वह जिसे देखकर मन मे कोई रस उत्पन्न हो और वह रस जो सुकून दे। लेकिन जब मै खूबसूरती की इस परिभाषा को समाज मे ढूंढने के लिए निकलती हूं तो मुझे पता चलता है कि समाज में तो मात्र खूबसूरती का संबंध हमारे शरीर और हमारे चेहरे के दिखाए पन पर निर्भर है जिसमे कहीं भी हमारे मुस्कान की या हमारी खुशी की जगह नहीं है। जो खूबसूरती कभी मन की भावना और मनमोहकता से  जुड़ी हुई थी वो अब बस हमारे मन में इनसिक्योरिटीज, स्ट्रेस और इंफेरियारिटी कंपलेक्स का कारण बन गयी है। खूबसूरती के जिन पैमानों की बात हमने उपर की है वो बाहर दिखाई देने वाले हमारे शरीर के हर एक अंग से जुड़ी हुई है इस पैमाने की एक लंबी सूची हमारे समाज में उपस्थिति हर एक मनुष्य के हाथों में है जो राह में बैठे हुए है या फिर यूँ कहें तो राह में दिखने वाले हर एक इंसान को उसी पैमाने पर रखकर उनको जज करने का कार्य करते हैं इससे हम और आप भी अछूते नहीं रहे है। अगर कोई व्यक्ति इस पैमाने पर शत प्रतिशत खड़े होते हैं तब उनकी तारीफ की जाती है और कहीं अगर उनसे कोई छूट हो गई हो तो उन्हें उनकी कमियां गिनाई जाती है। जब हम आईने के पास अपनी वास्तविकता को छुपाने की रेस में दौड़ते है तो इन्हीं  खूबसूरती के पैमाने को लिए हम भी अपने चेहरे पर भारी भरकम मेकअप लगाते हैं या अपने शरीर को 2 इंच छोटे कपड़ों में बांधते हैं और आईने के पास जाकर अपनी वास्तविकता को छुपाने  पर गर्व महसूस करते हैं। 

यह सारे पैमाने और खूबसूरती कि रेस हमें सोशल मीडिया के उस पोस्ट की तरह बनने के लिए मजबूर करती है जिसे लोगों ने सबसे ज्यादा पसंद किया है या लोगों ने जिस पर सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया दी है। सोशल मीडिया मे जो चीज ज्यादा लोगों के द्वारा प्रशंसा का पात्र बनती है जिसमें कमेंट ज्यादा होते हैं जिसको सबसे ज्यादा लोगों ने लाइक किया होता है इस सारी चीजों को हम खूबसूरती का पैमाना मान लेते हैं और उसकी हूबहू नकल करने में लग जाते हैं बिना यह समझे कि हम सब अलग हैं, और इसीलिए सबके लिए खूबसूरती अलग होगी, सब लोग अलग ही नही होंगे बल्कि एक दूसरे से अलग-अलग विशेषताओं के साथ जन्मे भी होंगे। उन्हें और उन विशेषताओं को और भी उभारने की तुलना में हम या तो अपने सांवले रंग को गोरा बनाने में लग जाते हैं अपने घुंघराले बालों को सीधा करने में लग जाते हैं या अपनी मुलायम त्वचा को किसी बॉडीबिल्डर की भांति डालने में लग जाते हैं। आज खूबसूरती के यह पैमाने ना तो किसी कलाकार की कविता मे दिखती हैं ना किसी शायर की शायरी से प्रभावित होती है बल्कि यह सुंदरता तो इंस्टाग्राम में मौजूद फिल्टर और उसमें दिखाए गए मेकअप ट्यूटोरियल से तय होती है । खूबसूरती की इस रेस में आपको हर एक पल भागना ही पड़ेगा क्योंकि अगर आपको लगता है कि आप खूबसूरती के पैमाने पर खड़े उतर चुके हैं तो आपको आपकी कर्मियों का एहसास कराने के लिए आपको आपके आस पास कोई ना कोई इंसान मिल ही जाएगा जो कह देगा की "यह कर देती तो तुम थोड़ी और अच्छी लगती"। 

इन्हीं खूबसूरती के पैमनो को हमारे समाज में स्थापित करने के लिए हमारी टीवी के कलाकार और सोशल मीडिया के हमारे इनफ्लुएंसर ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी है क्योंकि हमारी हीरोइन के किरदार को हमेशा गोरा, लंबा और पतले शरीर वाला ही दिखाया जाता है और हीरो के किरदार के साथ भी ऐसा ही कुछ है। आजकल गानों में हमें प्राकृतिक सौंदर्य को नहीं दिखाया जाता बल्कि किसी के तन को लचकते हुए दिखाया जाता है जिसका एकमात्र उद्देश्य सभी की नजरों को अपनी ओर खींचना यूं कहे तो कामुकता के भाव को बढ़ाना होता है । और बड़ी मुश्किल से अगर हमें ऐसी कोई जगह मिल भी जाए जहां खुबसुरती के मौजूद पैमनो पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया हो तो भी उसका परिणाम सकरात्मक नही आता है इन फिल्म/ वीडियो को या तो बहुत कम लोकप्रियता मिलती हैं या फिर इनको ट्रोल किया जाता है। मौजूदा समय मे अगर हमे सती सावित्री जैसे किरदारों को दिखाया भी जाता है तो इस बात का पूरी तरीके से ध्यान रखा जाता है कि कहीं उनके चेहरे पर कोई दाग दिख ना जाए। ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में सांवली त्वचा को, मोटे शरीर वाली लड़कियों को या छोटे कद वाली लड़कियों को या यूं कहें तो सुंदरता के पैमाने पर ना खड़े होने वाले इंसानों को पिक्चरों या इन्फ्लुएंस की लिस्ट में नहीं रखा जाता। पर यहा ध्यान देने योग्य बात यह है की वर्तमान मे इनकी संख्याा कितनी हैं? अगर हम इनकी संख्या की बात करे तो हमे ज्ञान होता हैं की ऐसे लोगो की संख्या बहुत कम है और इनका संघर्ष बाकियो की तुलना मे बहुत ज्यादा हैं।

मानव कौल (प्रसिद्ध लेखक) का कहना हैं- वर्तमान में हमारी यह आदत हो गई है कि हम दूसरों के आइनो से अपने आप को देखते हैं और भूल जाते हैं की वास्तविकता में हम कौन हैं। जैसे की एक पेड़ दूसरे पेड़ के जैसा नहीं होता वैसे ही एक इंसान कभी दूसरे इंसान के जैसा नहीं बन सकता।

वर्तमान में प्लास्टिक सर्जरी, स्किन ब्लीचिंग, लिप फिलर्स और न जाने कितने ही खतरनाक तरीकों को इजाद किया जा चुका है जिसका एकमात्र उद्देश्य अपने शरीर और अपनी वास्तविकता को त्याग कर इस खूबसूरती के दौड़ में सबसे प्रथम स्थान प्राप्त करना है और जो चित्र सिर्फ इंस्टाग्राम फिल्टर के तौर पर बस स्क्रीन में देखने को मिलती थी अब उस मृगतरिष्णा को अपने चेहरे पर हुबहु उतरने की हर कोशिश की जा रही हैं। प्लास्टिक सर्जरी के जरिए अपनी वास्तविकता को छुपाने की कोशिश में लग गए है अगर हम इसी दिखावे को खूबसूरती मानते हैं तो हम उन दृश्यों को या उन भावनाओं को किस पायदान पर रखेंगे  जो हमारे चेहरे या हमारे शरीर से नहीं बल्कि हमारी भावनाओं से और हमारी खुशियों से जुड़ी हुई है? हम उस हंसी को कहां रखेंगे जो बच्चों को सिर्फ मिट्टी में खेलने से मिलती है और जिस मिट्टी को हम गंदगी की पहचान मानते हैं? हम उस झुरी भरे चेहरे को कहां रखेंगे जिसने बचपन में हमें कहानी सुनाई थी? दरअसल बात यह है कि आज खूबसूरती का पैमाना निर्धारित करने का कार्य हमारा सोशल मीडिया करता है जो इसे जितना लाइक और शेयर और कमेंट किया जाता है उसे उतना ही सुंदर माना जाता है तो प्रश्न उठता है तो की क्या यही खुबसुरती हैं? मेरा जवाब होगा नही, खुबसुरती ये तो बिल्कुल नही हो सकती जिसके लिए मुझे अपने आप को छुपाना पड़े या अपने आप को पूरी तरीके से बदलना पड़े। मेरे लिये खूबसूरती वो हैं जिसका नाम लेते ही चेहरे पर खुशी आ जाए मन प्रफुली हो जाए, खूबसूरती वह है जो दिखावेपन से ना हो बल्कि जो हमारी भावनाओं से झलकती हो। खूबसूरती वह नही है जो किसी मेकअप का मोहताज हो और जो ना ही वो जो 2 इंच छोटे कपड़े पहनने पर दिख सके। खूबसूरती तो एक भावना है जो मन में सुंदरता जगा देती है एक ऐसी भावना जिसे देखने के बाद मन प्रफुल्लित होता है एक ऐसी भावना जो मन को कभी प्रेरणा देती है तो कभी मन में प्यार जगा देती है, जिसमें किसी भी तरह से कोई मिलावट ना हो। खूबसूरती वह है जो सिर्फ आंखों को आकर्षित न करें बल्कि आंखों के साथ-साथ वह दिलों को आकर्षित करें, वह जो हमारी मात्र आंखों को मोहित ना करें बल्कि हमारे मन को मोहने की भी क्षमता रखे, खूबसूरती वह है जो हमें उस दादी के चेहरे पर दिखाई देती थी जब वह हमें कहानी सुनाई करती थी, खूबसूरती वह है जब हम किसी बच्चों के चेहरे पर तब देखते हैं जब वह मिट्टी में खेलता है खूबसूरती वह है जब हम अपनी मां को किचन में हमारे लिए बड़े ही प्यार से कुछ पकवान बनाते हुए देखते हैं, खूबसूरती वह है जब किसी के मजाक पर कोई इंसान मुस्कुराता हो, खूबसूरती वह है जिसे देखने के बाद मन खुश हो जाता हो, खूबसूरती तो वह है जिसमें हमारे चेहरे की कमियों को छुपाने के लिए काम ना किया जाए बल्कि हमारे चेहरे के हर एक हिस्से को और हमारे शरीर के हर एक कोने को उभारने का काम किया जाए।

ऐसा नहीं है कि मैं आप सभी को यह कह रही हूं कि आप अपने चेहरे पर कुछ ना लगाए या उसका ध्यान ना रखे। मेरे कहने का अर्थ मात्र इतना है कि आप अपने चेहरे का ध्यान जैसा रखना चाहे वैसे रखे परंतु यह सब करते समय आपके मन में यह भावना ना आए कि आपको आपके चेहरे में लगे हुए दाग को छुपाना है या किसी के जैसा दिखना है या ऐसा दिखना है जो दुसरो की आँखों मे अच्छा लगे।

आप जैसे हैं आप वैसे ही रहिए। बेशक अगर आपको लग रहा है कि आपको मेकर करने से आपको खुशी महसूस हो रही हैं तो आप ये सब जरूर करिए पर इसके पीछे का उद्देश्य कभी भी किसी अन्य को खुश करना ना हो।

मुझे बाहर जाना था तो मै आज फिर से उसी आईने के पास गई इसके बाद मैंने अपने चेहरे को पानी से धोया और उसके बाद अब गुलाब जल लगाया लेकिन न जाने क्यों अब वह दबाव मन से उतर गया है या फिर मैं मैंने उसे रेस में भागना छोड़ दिया है जो मुझे लोगों के पैमाने की एक लंबी चौड़ी लिस्ट में खड़ा होने के लिए करना पड़ता था। अभी भी मैं अपने मन के कपड़े पहनती हूं पर वह कपड़े अब मेरे शरीर को 2 इंच छोटे कपड़ों में नहीं रखते बल्कि अब मेरे शरीर पर ऐसे कपड़े हैं जिसमें मुझे सुकून मिलता है। साधारण भाषा मे कहना चाहू तो अब मैं खुश हुँ और ये खुशी मुझे दुसरो की तारीफ़ सुनकर नही मिली हैं बल्कि खुद को प्यार करने से मिली है। 

REFRENCE-

Note- जो भी बाते मैंने ऊपर लिखी है यह सारी बातें मेरे खुद के विचार एवं मेरी व्यक्तिगत सोच पर आधारित है। अगर आपको इसमें से किसी भी बिंदु पर आपत्ति हो तो आप उसकी आलोचना कर सकते हैं। मुझे और भी ज्यादा खुशी होगी अगर आप अपने विचार मुझसे साझा करे।

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