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मुझे हमेशा से ही अपनी जिंदगी में कोई ऐसा चाहिए था जो मेरी बातें सुने, मेरी भावनाओ को समझे और मेरी हर मुस्कान के पीछे का दर्द देखें। पर कुछ समय बाद जब मै थोड़ी बड़ी हुई तो महसूस हुआ कि मेरे आस-पास मौजूद सभी लोगों को यही एक ख्वाहिश है कि कोई उन्हें समझे। मुझे यह भी पता चला कि हर इंसान अपने लिए भावनात्मक सहारा ढूंढने में लगा हुआ है। यह सारी चीज देखने के बाद मैंने अब अपने आप को भावनात्मक सहारा पाने वाली इंसान से हटाकर एक भावनात्मक सहारा देने वाली इंसान बनने का फैसला किया। जब मैं बाहर लोगों का सहारा बनने की इच्छा से गयी तो मुझे पता चला कि यहां पर एक बड़ा तबका उन लोगो का है (जिसमे अक्सर लड़के शामिल है) वो यह मानने को तैयार ही नहीं है की उन्हें भावनात्मक रूप से किसी की जरूरत है या उन्हें कोई ऐसा इंसान चाहिए जिनके सामने वह रो सके।
फर्क हम दोनों में बस लिंग का,
ज्यादा नहीं बस "का" और "की" का।
मात्राओं पर हमारा कोई अधिकार नहीं,
पर भावनाओं में हम फेर बदल कर लेंगे।
जब तुम टूट जाओ तो हम तुम्हें थाम लेंगे,
और जब हम गिर जाएं तो तुम हमें उठा लोगे।
बेशक शरीर की शक्ति तुम्हारी ज्यादा है,
पर भावनाओं के संतुलन में हमने भी ऊपरी पायदान पाया है।
परेशानी बताने से ही तो हल पाओगे,
थोड़ा सुकून तो अनुभव कर पाओगे।
अगर तुमको रोना होगा तो कंधा हम दे देंगे,
अगर हंसना होगा तो थोड़ा बहुत तो मजाक हम भी कर लेंगे।
अगर तुम्हारा भी मन अच्छा दिखने का करें,
तो स्टाइल हम सिखा देंगेl
अगर बाहर काम करने का मन ना बने,
तो पैसा हम कमा लेंगे।
अगर मम्मी की याद आए,
तो लोरी हम सुना दिया करेंगे।
अगर सरप्राइज तुम्हें पसंद है,
तो हर बर्थडे में तोहफे हम दिया करेंगे।
तुम इंसान हो कोई अजूबा नहीं,
मन में दर्द होना तो कोई गुनाह नही।
दर्द को निकालने के लिए पत्थर नहीं पानी जैसा बहना जरूरी है,
खुद में इसे दबाकर रखना नहीं बल्कि किसी अपने से कहना जरूरी है।