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यूं तो कल एक रंग चुना मैंने
जो मेरी दोस्त को पसंद था
खुश थी वो बहुत
कि ये उसके लिए था
कहने लगी मुझे हूर की परी
अरे कह रही थी अप्सरा
"तू ही बेस्ट फ्रेंड है मेरी" ये शब्द था उसने कहा

यू जब ये कल बीतता
अब एक नया कल आ गया
फिर से कोई रंग को
मैंने युं ही चुन लिया
जो न पसंद उस दोस्त को
उदास थी हैरान थी
कहने लगी वो बेवफा
अरे हो गई मुझसे खफा
"तू ना मेरी दोस्त है" ये शब्द भी उसने कहा

मैं थी सही जब वो कहे
होंगी गलत जब वो कहे
जब चीज हो उसके लिए
तो मुझको वो अपनी कहे
पर मेरा क्या???

ना हूं मैं जो वो कह रही
ना हूं मैं वो जो सुन रही
मैं हूं वही जो मैं कहूं
मैं वो नहीं जो तुम कहो

आशा हो जानने की "मैं"
तो सुन लो यारों "मैं हूं मैं"

करनी हो मेरी बात तो,
मुझसे आकर कर लो तुम
लग गई हो बात कोई,
मुझे आकर कह लो तुम

यूं ना किसी पड़ोस से
और ना ही कोई दोस्त से
अगर सच में हो जानना मुझे
तो मुझसे मुझको जान ले

तुम भी सुनो कि तुम हो कौन??
तुम वो नहीं जो वो कहे
वो भी नहीं जो सब कहे
तुम हो वही जो तुम कहो
अच्छा भला बुरा कहो

ना कोई पड़ोस से और ना ही कोई दोस्त से
अगर जानना चाहे कोई
तो तुमसे तुमको पूछ ले

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