Image by No-longer-here from Pixabay

आज़ादी को बीते कई वर्ष, किंतु सोच वहीं पर अटकी है।
छोटी जात क्यों उठ रही, बस यही बात मन में खटकी है।
जात-पात पर आगे बढ़ने से, क्या हासिल होगा लड़ने से?
इस झगड़े ने तो देश की दशा, कई दशकों पीछे पटकी है।

सद्भाव-मानवता के पथ पर, ये नित टिका है बनकर छेद।
ऊंच-नीच तथा जात-पात हैं, गहरा अमिट कलंकित भेद।

सबकी रूपरेखा जब एक, बीच में जात कहां से आ गई?
भोर की आशा करते थे हम, काली रात कहां से आ गई?
यदि प्रगति का नज़ारा होगा, तो यह द्वंद्व न दोबारा होगा।
इतना सच गढ़ने के बाद, लड़ने की बात कहां से आ गई?

इस अधीर भीड़ को देखकर, उस ईश्वर को भी होगा खेद।
ऊंच-नीच तथा जात-पात हैं, गहरा अमिट कलंकित भेद।

मानव के कल्याण की सोचो, तुम मानवता की बात करो।
ऐसी अनूठी पहल का स्वागत, आज सारे एक साथ करो।
ये रुष्टता देख सब बिछड़ेंगे, झुंझलाहट से संबंध बिगड़ेंगे।
मुश्किल में फंसे व्यक्ति की ओर, सहायता का हाथ करो।

ऐसा ही पुण्याचरण हमें सिखाते, पुराण, गीता, चारों वेद।
ऊंच-नीच तथा जात-पात हैं, गहरा अमिट कलंकित भेद।

.   .   .

Discus