मिट्टी की परत चढ़ी आत्मा पर,
चेतना देह बन जाती है।
चलते-चलते जीवन भर ,
मिट्टी से जन्मी मिट्टी में मिलकर ,
आखिर देह राख बन जाती है ।
दूर-दूर की सोच कर मानव,
अपने जीवन का आज बताता है।
कल की चिंता करता-करता,
हर रोज पाप का भार उठाता है।
फिर मैली देह धोने,
गंगा की ओर निकल जाता है।
गंगा के पानी में शुद्ध हुआ,
इस दुनियादारी में लीन होकर,
और मलिन हो जाता है।
साठ हजार सगर वंशी,
अभिमानी व ज्ञानी थे।
उनके भाई अंशुमान,
सरल मन के, व ज्ञानी थे।
देव सम्राट देवराज इंद्र का,
था अहंकारी स्वभाव।
चुराकर अश्वमेघ के अश्व को,
कपिल मुनि के आश्रम में,
ले जाकर दिया बांध।
सगर कूल के कुमार,
ढूंढे धरती खोदे पाताल।
मिला अश्व कपिल मुनि के पास,
चोर समझ किया अपमान।
समझी नहीं इंद्र की चाल।
सच कहता जमाना, अहंकार देता,
ज्ञान और विवेक को फांसी।
आखिर सपनों की अमीरी में
फूटा मटका आई उदासी।
भीषण हुई आग क्रोध की,
जलती हुई ज्वाला आंख में,
साठ हजार सगर वंशी
मुनि श्राप से मिले राख में
पाप इतना बड़ा था कि
छीन ली उनकी आजादी
सारे सगर कुमारों की आत्मा
पाताल में ही रही बन्दी
कुछ दिन उपरांत अंशुमान आए
कर जोड़ मुनि समक्ष
देवराज का छल बताये
शांत होकर कपिल मुनि
मुक्ति का हल बताये
कर घोर तप ब्रह्मा का
ब्रह्मा को मनाना होगा
जन कल्याण हेतु
स्वर्ग से गंगा को
भूमि पर लाना होगा
स्वर्ग का ऐश्वर्या छोड़
आखिर क्यों गंगा
भूमि पर आएगी
किस कारण हेतु
मेरे भाइयों को
मोक्ष दिलाएगी
तीनों लोगों को हिला दे
ऐसा एक तप होगा
गंगा को लाने वाला
सगर वंश का भगीरथ होगा