आज मनुष्य ने काफी तरक्की कर ली है। फोन, कम्प्यूटर, फ्रीज, ए. सी. आदि लाखो उदाहरण है जो मनुष्य के विकास को दर्शाता है। एक वक्त ऐसा था जब मनुष्य सूरज डूबने के बाद अंधेरा होने के कारण कुछ काम नहीं कर पाता था, पर इंसान के दिमाग ने तो इस अंधकार पर भी विजय प्राप्त कर ली है और हर देश, गांव और मोहल्ले में बिजली की चमक फैला दी है। परंतु जब हम मानव विकास की बात करते है तो हमे यह नहीं भूलना चाहिए की ये सारे अविष्कार प्रकृति की दया से ही संभव हो पाए है, क्योंकि मनुष्य द्वारा निर्मित हर वस्तु प्रकृति के कच्चे माला की ही देन है। पर यह सोचने योग्य बात यह है की क्या इन आविष्कारों का सबके जीवन पर सकारात्मक बदलाव आ पाया है? क्या इन आविष्कारों ने सबको सुविधा उपलब्ध कराई है या ये किसी के जीवन का अभिशाप भी बन गया है? हम में से लगभग 90% लोग यहीं कहेंगे की ये अविष्कार वरदान है और ये बात सही भी है पर केवल मनुष्य के लिए। इन आविष्कारों से जिंदगी आसान हुईं है पर केवल मनुष्यो की। अक्सर हम इन जीवों को अनदेखा कर देते है और ये भूल जाते है की इनको भी जीने का उतना ही अधिकार है जितना की हम मानवों को। आज जमीन का शायद ही ऐसा कोई कोना होगा जिसे इंसान ने अपनी स्वयं की संपत्ति मान कर कब्जा ना किया हो। और अगर कोई जमीन अब भी बची है तो वह भी आने वाले कुछ दिनों में किसी विकास के नाम पर बनाई जा रही बड़ी इमारतों का हिस्सा बन जायेगी 40 फीसदी लोगो को जानवरो से लगाव है पर उनमें से मात्रा 5 फीसदी लोग ऐसे है जो पशु संरक्षण के क्षेत्र में वास्तविक रूप से कार्य कर रहे है। बड़े 45% लोग ऐसे है जो एनिमललवर के नाम पर किसी महंगी प्रजाति के विदेशी कुत्ते को लाकर अपने परिवार का हिस्सा बना देते है और सड़क के कुत्तों को देख कर दंडे मरते है। आज कल लोग केवल अपने स्वार्थ के लिए ही जानवरो को पलते है और जब उनका स्वार्थ पूरा हो जाता है तो उस जानवर को मरने के लिए किसी सड़क में छोड़ आते है इसका सीधा उदहारण पिछले पांच साल में सड़क में घूम रही हजारों गायों को देख कर लगाया जा सकता है। जब तक एक गाय दुध देती है तब तक लोग उसे अपने पास रखते है और जैसे ही उन गायों में स्वस्थ सम्बंधी गिरावट आती है तो उसे किसी गली में मरता छोड़ देते है। क्रूरता की सीमा तो तब पार हो जाती है जब हम अपने स्वाद मात्र के लिए मुर्गियों को जबरदस्ती इंजेक्शन देकर अंडे उत्पादित करवाते है। एक शिशु के जन्म के पश्चात एक औरत 15 दिन तक ठीक से चल भी नहीं पाती और हम मुर्गियों को हर 15 दिन में इंजेक्शन से रहे है। और जब अंत में एक मुर्गी अंडा देना बंद कर देती है तो उसे मार कर खा जाते है। इन बातों को ये अर्थ बिलकुल भी नहीं है की हम अंडा खाना छोड़ दे बल्कि इन बातो का मात्रा इतना ही उद्देश्य है की उन मुर्गियों को इंजेक्शन ना दे और जैवीय प्रजन्ना के परीणाम स्वरूप ही अंडे उत्पादित करे। इसके अलावा भी गई समस्याएं है जो उन बेजुबानों को सहनी पड़ती है।
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मनुष्यो का जीवन अब पप्लास्टिक सामानों और खासकर प्लास्टिक बैग्स के बीना अधूरा सा लगता है हमारे द्वारा उपयोग होने वाले प्रतिदिन का 80% समान प्लास्टिक का बना होता है। फिर चाहे वह सुबह उठकर सबसे पहले उपयोग किए जाने वाला ब्रश हो, या रात को सोने से पहले लाइट को बंद करने हेतु लगा स्विचबोर्ड का बटन हो। प्रत्येक स्थान पर प्लास्टिक भरपूर मात्रा में मौजूद है। स्थिति तब बिगड़ जाती है जब प्रतिदिन इतनी भारी मात्रा में उपयोग किए जाने वाला प्लास्टिक प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बनकर उभरता है। जी हां, वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और मृदा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण प्लास्टिक ही है। तथा इसका मनुष्य के जीवन पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। और जब हम इसी प्लास्टिक का अध्ययन पशुओं से जोड़कर करते हैं तो यह स्थिति और भयावह रूप धारण कर लेती है जिसका परिणाम पशुओं की जिंदगी की दर्दनाक अंतिम सांसों के रूप में सामने आता है। United nation की रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल 500 बिलियन प्लास्टिक बैग इस्तेमाल किया जाता हैं। 11 सितंबर 219 में छपी रिपोर्ट के अनुसार "प्लास्टिक पौलिथिन खाकर मरने वाली गायों के मौत का आंकड़ा काफी बड़ा है और इस लिस्ट में सबसे पहले नाम उत्तर प्रदेश और राजस्थान कहां पर है"। और इसी के साथ 2018 में इंडियाटुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में पिछले चार साल प्लास्टिक का कचरा खाने से हजारों गायों की जानें गई है। किसी भी जीव द्वारा प्लास्टिक बैग या प्लास्टिक के किसी भी पदार्थ को पचा पाना असंभव है। और जब कोई पशु प्लास्टिक के किसी सामान को खा लेते हैं तो उनसे आंतों में रिएक्शन हो जाता है। और कई बार तो प्लास्टिक इतने ज्यादा नुकीले होते की, गले में ही फस जाते हैं जिससे उनका दम घुटने लगता है और अंततः उनकी मृत्यु हो जाती है। मनुष्य को अपने स्वार्थ और सुविधा को थोड़ा कष्ट देते हुए, इन बेजुबान पशुओं के बारे में सोचना चाहिए और प्लास्टिक का उपयोग थोड़ा कम कर उसका निपटन भी सही तरीके से सही जगह पर करना चाहिए।
वर्तमान में कई सारे ऐसे जीव हैं जो पूर्णतया लुप्त होने की कगार पर है। और कुछ तो ऐसे भी जीव थे जिनका इस पृथ्वी से पूर्णतया नाश हो चुका है। मानव द्वारा इन जीवों को संरक्षण प्रदान करने का भावनात्मक कारण तो है ही, परंतु सबसे बड़ा कारण प्रकृति संतुलन को बनाए रखना भी है। आज भारत 142.86 करोड़ की आबादी के साथ विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बनकर उभरा है। इसके साथ ही सभी देशों में मानव जनसंख्या लगातार प्रगति पर है तो ऐसे में अगर हम सिर्फ मानव विकास पर अपना संपूर्ण ध्यान केंद्रित करेंगे तो अन्य जीव बेशक ही पतन की ओर जाएंगे। बढ़ती जनसंख्या के दबाव के कारण और खाद्य तथा कच्चे माल की भारी मांग के परिणाम स्वरूप लगातार वनों के क्षेत्रफल में गिरावट देखी गई है। हाथी दांत, तेंदुए की खाल और बाघों के दांत के व्यापार में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। गेंडे के सिंह तथा कस्तूरी की मांग बढ़ रही है जिसका उपयोग औषधि तथा सुगंधित पदार्थों के लिए किया जाता है। वर्तमान स्थिति कुछ ऐसी है कि एशियाई शेर, बाघ, लमचित्ता, कस्तुरीमृग, गैंडा, सोहन चिड़िया, नीलगिरीलंगूर, अजगर तथा गिद्ध लुप्त होने की कगार पर है। बेशक ही सरकार द्वारा कई सारी योजनाएं चलाई जा रही है जैसे प्रोजेक्ट टाइगर (1975), मगरमच्छ प्रयोजन योजना (1975), रैईनार्सिरस प्रोजेक्ट (1987) शाह योजना (snow-leopard project) तथा प्रोजेक्ट एलीफेंट आदि योजनाओं की शुरुआत की गई है। पर सिर्फ इतना ही काफी नहीं है। हमें व्यक्तिगत स्तर पर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।
पशुबाली प्राचीनकाल से ही प्रचलन में है। लोगो की मान्यता है की किसी अच्छे काम को शुरू करने से पूर्व अगर किसी पशु की बलि अर्पित की जाए तो कार्य मंगलमय होता है। परंतु क्या सच में किसी पशु की जान लेकर किसी अच्छे और नेक परिणाम की आशा की जा सकती है ji कहा जाता है की जिन पशुवो को यज्ञ में आहुति दी जाती है अर्थात अच्छे काम की शुरुवात से पहले जिन पशुओं को मारा जाता है वो सीधा स्वर्ग का सुख भोगते है। तो इसी सोच के उत्तर में एक कवि ने लिखा है कि-
नहां स्वर्गफलोपयोगतृषितो नाभ्यर्भितस्त्वं मया।
संतुष्टुस्तृण भक्षणेन सततं साधो न युक्तं त्वं ।।
स्वर्गे यान्ति यदि त्वया विनिहता यज्ञे ध्रुवं प्राणिनो।
यज्ञं की ना करोषि मातृ - पितृभिः पुत्रैस्त्था बान्धवैः।।
अर्थात् - मुझे स्वर्गफल के भोग की इच्छा नहीं है और न ही मैने तुमसे यह प्रार्थना ही की है कि तुम मुझे यज्ञ में डाल कर स्वर्ग में पहुंचाओ। मुझे तो घास आदि खाकर ही संतोष है इसीलिए तुम्हें यह काम शोभा नहीं देता। यदि वही माना जाए की तुम्हारे द्वारा यज्ञ में होमें गए प्राणी स्वर्ग में जाते हैं तो फिर तुम अपने प्रिय से पिया माता, पिता, पुत्र और भाइयों को यज्ञ में होम कर उन्हें स्वर्ग को क्यों नहीं भेजते? कहने का अर्थ मात्र इतना ही है की स्वर्ग प्राप्ति की आशा से किए जाने वाले यज्ञ केवल स्वार्थ प्रधान हैं तथा उसे अब रोक देना चाहिए, अपितु कोई कठोर कानून का निर्माण करना चाहिए जिससे यह बलि रोकी जा सके। इसके साथ ही मनुष्य ने अपने स्वस्थ हेतु बहुत से अस्पताल तथा इलाज पद्धति विकसित कर ली है पर जानवरों के लिए अभी भी बहुत कम इलाज उपलब्ध है और जो उपलब्ध हैं वह भी बहुत सीमित क्षेत्र तक ही है। चूंकि ये जानवर बेजुबान है इसीलिए ये अपनी परेशानियां कह नहीं सकते और जब इनमे किसी महामारी की चपेट में आते है तो लगातार एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे और ऐसी ही पूरी प्रजाति संपूर्ण नाश की ओर चली जाती है। उदहारण स्वरूप आफ्रीका में 1890 के दशक में रिंडरप्रेस्ट महामारी को ही देख रखते है जिसने कारण वहा के 90 फीसदी से अधिक मवेशियों की जाने गई। वर्तमान में यह आवश्यक है की हम पशुओं के स्वास्थ्य पर ध्यान दे क्योंकि वो है तो प्रकृति है, और प्रकृति है तब तक हम हैं।
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आगे का मार्ग- हम क्या कर सकते है?
चूंकि इस पृथ्वी में केवल मनुष्य ही एक मात्र ऐसा जीव है, जिसके पास सोचने समझने की शक्ति है। अगर मनुष्य का दिमाग केवल स्वयं की उन्नति की सोच से प्रेरित हो तो वह पूरी पृथ्वी पर राज कर सकता है। और अगर यही सोच " सर्वे भवन्तु सुखीना" की सोच से प्रेरित हो तो सबका उद्धार कर सकता हैं। हमे व्यक्तिगत स्तर पर यह समझना चाहिए की, इस प्रकृति में जीवों का क्या योगदान है। और भावनात्मक स्तर पर वो कितनी परेशानियों से पीड़ित है। इसी बातो को ध्यान में रखते हुए हमे कचड़े के सही निपटान पर अर्थात प्लास्टिक की पन्नियों में किसी प्रकार की खाद्य सामग्री ना फेंके जानें पर ध्यान देना चाहिए। और जो फेक रहा हो उसे भी रोकना चाहिए। जब किसी प्रकार का सार्वजनिक उत्सव मनाया जाता है तो उस उत्सव के दौरान बचे खाने को कूड़े में न डालकर पशुओं को देना चाहिए। हमारे द्वारा उठाए गए ये छोटे कदम ही एक बड़े सपने की मंजिल बनेगी। इसके साथ ही बात आती है जल, थल और मरुस्थल की जहां ये जीव निवास करते है। मनुष्य अपनी खुशी के लिए ऐसे स्थानों पर जाता है और वहा पर प्लास्टिक जैसे अनेकों जहरीले पदार्थों को छोड़ देता है । मनुष्य की इस लापरवाही का पशुओं पर बहुत घातक प्रभाव पढ़ता है। सरकार ने बहुत सारी ऐसी ही जमीनो को इंसानी निवास, प्रयोगशालाओं तथा उद्योग निर्माण को अर्पित कर दिया है। अब बहुत कम ही क्षेत्र हैं जिसे हम जीवो का निवास स्थान कह सकें। सरकार को अब इस और ध्यान देना चाहिए कि जो क्षेत्र शेश हैं, वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई भी मानवीय हस्तक्षेप ना होने दें। मनुष्य द्वारा प्रदूषण का अगर सबसे ज्यादा किसी पर घातक प्रभाव पड़ा है तो वह है जलीय जीव। मनुष्य अपने द्वारा दिन प्रतिदिन के क्रियाकलापों में उपयोग किए गए सामानों को नदियों, झीलों तथा तालाबों में फेंक देता हैं। साथ ही साथ वर्तमान में कोरोना के दौरान मृतकों की लाशों को भी नदियों में बहा दिया गया जिससे जलीय जीवों की जानमाल की काफी हानि हुई। जब हम जल प्रदूषण की बात करते हैं तो इसमें सबसे पहला नाम उद्योगों का आता है। जहां से भारी मात्रा में और अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में बहा दिया जाता है। हमारे पास अब भी वक्त है कि हम संभल जाएं नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब मनुष्य की मौत इससे भी अधिक पीड़ा के साथ होगी।
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