क्या भगवान है? क्या आपने कभी अनुभव किया कि भगवान है? अगर नही किया तो कैसे कह सकते हो कि भगवान है? आज भी हमारे समाज कि हर चौथी गली मे एक बच्चा भूख से तड़प रहा है, हर दुसरे आंगन मे औरते घरेलू हिंसा का शिकार हो रही है और इसके दुसरे ही तरफ धर्म के नाम पर बड़ी इमारत बनायी जा रही है। निम्न पंक्तियां हमारे विश्वास पर प्रश्न करती है कि -
‘‘अखबार के चहरे पर जिस वक्त तीन बच्चे आइसक्रिम खाते हस रहे है,
उसी वक्त बीस पैसे मे सामान ढोने के लिये लुका छिपी करते बच्चो के पु्ळो पर,
पुलिस वालो कि बैते उमच रही है। ईश्वर होता तो इतने देर मे उसकी देह क्रोड़ से गलने लगती।
सत्य होता तो, अपनी न्ययाधीश की खुर्सी से उतर कर जलती सलाखे आंखो मे खुबच लेता।
सुंदर होता तो वह अपने चेहरे पर तेजाब पोत अंधे कुएं मे कुद गया होता। लेकिन अगर वो होता तब तो!!‘‘
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दुनिया को बनाने वाले और इसे चलाने वाले किसी भी शक्ति का साक्ष्य प्राप्त नही हुआ है। विज्ञान का मानना है कि या तो वो हमे धोखा दे रहा है, हमसे मज़ाक कर रहा है, और अगर ऐसा नही है तो वाकई भगवान का भी कोई अस्तित्व नही है, और अगर है तो ये सारे अन्याय, अत्याचार और ये हिंसा क्यो हो रही है?
तारिख 2 सितंबर 2022 मे एन.सी.आर.बी. के द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट मे लिखा गया था कि ‘‘45 हजार से ज्यादा महिलाओ ने साल 2021 मे आत्महत्या कर ली‘‘ इसके साथ ही 11 फरवरी 2022 मे बी.बी.सी. द्वारा प्रकाशित एक संपादकी मे प्रोफेसर शानदार अहमद ने लिखा था कि ‘‘साल 2020मे बेरोजगारी तथा आर्थिक तनाव के कारण आत्महत्या के मामले मे काफ़ी उछाल देखा गया जिसे नज़रंदाज़ नही किया जा सकता‘‘। ऐसी ही एक और घटना जो 20वीं शताब्दी के ‘’विश्व युद्ध‘‘ के नाम से जानी जाती है मे ना जाने कितने ही बेकसूर लोगो की जाने गई, कितने ही बच्चे अनाथ हो गये अथवा अनगिनत जीव जंतु और प्रकृतिक संसाधनो का ह्रास हुआ। अगर भगवान है तो उन्होने मौत के इस प्रचंड तांडव को क्यो नही रोका और ये अनर्थ कैसे होने दिया?
कुछ लोग कण कण मे ईश्वर कि मौंजुदगी पर विश्वास जताते है तो कुछ लोग सबकुछ अपनी मेहनत और कर्मो पर निर्भर बताते है। भगवान पर उठने वाले इन सभी सवालो से आगे बड़कर देखे तो हम पायेगे कि उनके होने का सबसे बडा प्रमाण तो, वो बच्चा ही देता है जो अभी तक सिर्फ इसी आशा मे बैठा है, कि भगवान उसे खाना जरुर देंगे और वो औरत अभी तक सिर्फ इसी विश्वास के कारण ज़िदा है कि भगवान सब ठीक कर देंगे। विज्ञान के ज़रिये बेशक ही हम तर्क और वितर्क के बल पर किसी भी सत्य के नवीन पहलू को उजागर कर सकते है, पर उस सत्य का क्या जो लोगो मे आशा, विश्वास और उर्जा का अनंत स्रोत बनी हुई है।
इस सृष्टि मे ऐसी कोई भी चीज नही है जिसका अस्तित्व मौजुद हो और उसका कोई निर्माता ना हो। अगर फल है तो पेड़ होगा ही, अगर जाला है तो मकड़ी तो होगी ही। अर्थात अगर कोई चीज बनी है तो उसे बनाने वाला भी होगा ही। ठीक इसी प्रकार अगर सृष्टि है तो इसे बनाने वाले का भी अस्तित्व है। आज के इस वैज्ञानिक युग मे इस बात पर विश्वास किया जाता है कि:- ’’जो चीज हमारी तर्क की कसौटी पर खड़ा न हो, वो सत्य नही हो सकता’’ अक्सर ये वाक्य बोलते वक्त हम ये भुल जाते है कि कुछ चीजे हमारे सवाल और हमारी तर्क कि कसौटी से कई ज्यादा उपर होते है जिनपे हम प्रश्न तो कर सकते है, पर शायद हम उसका उत्तर ना खोज पाए। अगर हम सब चीज का कर्ता केवल विज्ञान को ही मानते है, तो अब भी एक अमीर सोने का महल पाकर भी क्यो दुखी है, और एक गरीब दो वक्त की रोटी मे भी क्यो संतुष्ट है?
एक पल के लिये हम अपना संपूर्ण ध्यान धार्मिक ग्रंथों से हटा कर केवल वैज्ञानिक लेखो के अध्ययन पर लगाये तो हम पायेगे कि विज्ञान ने कभी भी ईश्वर के अस्तित्व को नाकारा नही अपितु आइनसटाइन ने तो सीधे शब्दो मे ये भी कहा है कि ‘‘मै नास्तिक नही हुॅ‘‘। बहुत से ऐसे भी वैज्ञानिक हुए है जिनका दावा था कि ‘‘इस ब्राम्हांड मे ऐसी शक्ती का अस्तित्व है जो हमारी पहुंच से दुर है‘‘। प्रत्येक कानुन के निर्माण मे किसी ना किसी निर्माता का हाथ जरूर होता है। उदाहरण के लिए हम भारतीय संविधान को ले सकते जो नियम कानुन कि एक लिखित पुस्तीका है जिसके निर्माण का श्रेय डॉ. भीमराव अंबेडकर को दिया जाता है। ठीक इसी प्रकार हमारी पृथ्वी जो बहुत से नियम कानुनो के साथ चलती है जैसे गुरूत्वाकर्षण का नियम, प्रकाश का नियम, जीव जगत के नियम आदि। क्या आपने कभी सोचा कि, इन सभी नियमो को किसने बनाया? और ये अभी तक कैसे कार्यरत है। बेशक, हमने आज तक भगवान के वास्तविक स्वरुप को नही देखा है परंतु अगर आपको भगवान के अस्तित्व का प्रमाण चाहिए तो बस एक बार भगवान पर आस्था लगा कर देखिए, बस एक बार यह विश्वास कर के देखिए कि वास्तविक कर्ता हम नही अपितु कोई और है। तत्पश्चात आप अपना जीवन अधिक हर्ष और उल्लास से परिपुर्ण पायेगे।
जिनको भगवान मे आस्था होती है उनका जीवन अन्य मनुष्यो कि तुलना मे अधिक सुखनमय होता है, हम इसका जीता जागता उदाहरण मनुष्यो के उस वर्ग मे देख सकते है जिनकी भगवान मे अटुट श्रद्धा होती है, जो मानते है कि ‘‘सभी कार्य भगवान की इच्छा से ही घटित होता है हमारे हाथ मे तो केवल कर्म करना ही लिखा है तो क्यो ना कल की चिंता किये बिना आज का दिन हस्ते खेलते बिताया जाए, क्योकि इस आशा निराशा और तनाव का कोई महत्व नही है।‘‘ जरा आप सोचिए कि भगवान के अस्तीत्व पर विश्वास करने मात्र से ही हमारी इतनी परेशानियां सुलझ जाती है तो अगर हम अपने आप को उन्हे समर्पित कर दे तो क्या होगा। जब हमारी कोई इच्छा मंदिर मे सिर टिका कर, मस्जिद मे चादर चड़ा कर या गिरजाघर मे मोमबत्ती जलाकर पुरी नही होती, तो अक्सर हम यह घोषणा कर देते है कि भगवान है ही नही। परंतु यह घोषणा करने से पुर्व हमे यह जानने कि कोशिश करनी चाहिये कि भगवान का वास्तविक स्वरुप क्या यही है जिसकी हम पुजा कर रहे है, अथवा यह सिर्फ मानव द्वारा बनायी गयी एक मिथ्या मात्र है। अगर हमे सत्य की वास्तविक प्रकाष्ठता तक पहुंंचना है तो हमे इसके लिये उनके द्वारा निर्मित संसार कि प्रकृति, सरलता अथवा इसके सात्विक स्वाभाव को समझना होगा।
जरा सोचिए, जो पानी गृत्वाकर्षण के कारण इमारत की छठवी मंजिल तक नही जा पाती, वही पानी किस प्रकार नब्बे फिट उपर नारियल मे जा मिलती है? जो बीज कल तक तुम्हारी मुठ्ठी मे बड़ी ही आसानी से बंद हो जाती थी, आज उसका फल भी तुम्हारी पहुॅच से काफी दुर है। आप उस स्थिती की कल्पना किजिए जब सुबह होते ही आपके सामने अनेको पकवान अथवा ढेड़ सारी खाद्य सामाग्रीयां रखी हुई है और घर वालो से पुछने पर उनका जवाब आता है कि ‘‘ये सब उन्होने नही बनाया अपितु यह सब तो अपने आप बन गया‘‘ तो उस परिस्थिति मे आपका भी तर्क यही होगा कि ‘‘कोई चीज अपने आप कैसे बन सकती है, उसे बनाने वाले का होना भी तो आवश्यक है‘‘ ठीक इसी प्रकार ‘‘बिग बैक थ्योरी‘‘ जिसके अंतर्गत यह मान्यता है कि संपुर्ण ब्राम्हाण्ड का उत्भव केवल एक बिंदु के अंदर होने वाले विस्फोट के परिणाम स्वरुप हुआ है, तो इसमे सोचने वाली बात यह है कि इस बिंदु का उत्भव ही कैसे हुआ? कहा जाता है कि - प्रत्यक्ष को प्रमाण कि जरुरत नही होती, और सत्य को विश्वास की जरुरत नही होती। अगर हम उपरोेक्त पंक्तियो पर विचार करे तो हम पाते है की बेशक धर्म को मनुष्यो ने बनाया है, उनमे होने वाले कर्मकांडो को मनुष्यो ने चलाया है, और तो और ईश्वर, अल्लाह, मज़हब को भी इंसानो ने ही बसाया है परंतु हमारे स्वंय के अस्तित्व का क्या? ऐसी कौन सी शक्ती है जिसने जल मे जान डाल दी? आज जब पुरे विश्व के लोगो के मस्तिष्क मे उनकी आस्था, विश्वास और धर्म के सहारे उनके अंदर कट्टरतावाद का विकास किया जा रहा है तो हमे जरुरत है कि हम अपने आप से यह प्रश्न करे कि ‘‘क्या भगवान है? अगर है तो उनकी परिभाषा क्या है? उनके होने का प्रमाण क्या है?‘‘ या उनका अस्तित्व इससे भी बढ़कर कुछ है।
क्या यह किसी स्वपन से कम है कि, एक समय मे जो अधेड़ उम्र का व्यक्ती टाउन हॉल के समक्ष कृष्ण भगवान की प्रति बेचने का कार्य करता था, उसी व्यक्ती ने बाद मे चलकर विश्वभर को सनातन धर्म का पाठ पठाया, जी हॉ हम अंतर्राष्टीय कृष्णभावनामृत संघ के संस्थापक श्री अभयचरणारविंद भक्तिीवेदांत स्वामी प्रभुपाद की ही बात कर रहे है जिन्होने कालांतर मे चलकर ‘‘इस्कॉन‘‘ कि स्थापना की तथा विश्व भर को गीता ज्ञान से अवगत कराया। एक और व्यक्ती जिन्हे खुद लिखना पढ़ना नही आता था, उन्होने सिर्फ प्रकृति के करीब हिरा नामक गुफा पर्वत मे जाकर परम सत्य कि ना केवल प्राप्ती कि अपितु दुनिया भर को इस्लाम का ज्ञान भी दिया और आज देखिए इस्लाम विश्व के सबसे प्रमुख धर्मो मे से एक है जी हॉ हम इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद की ही बात कर रहे है। ये दोनो ही उदाहरण यह सिद्ध करने हेतु प्रयाप्त है कि ‘‘भगवान है‘‘ और उसका यथार्थ प्रमाण इन दो व्यक्तियो द्वारा देखा व समझा जा सकता है।
एक पल के लिए आप इन सभी वाद विवाद, तर्क वितर्क से उपर उठ जाइये और ये भुल जाइए कि ‘‘भगवान‘‘ नामक कोई भी शब्द अस्तित्व मे है। और अब आप प्रकृति के सभी चमत्कारो को प्ररंभ से देखना शुरू किजिए। वो पेड़ जिसे आप बचपन से देखते आये है, वो ना जाने कब और कैसे एक पौधे से वृक्ष मे परिवर्तित हो गया। और वो बच्चा जो कल तक अपने मां का पल्लू पकड़कर चलता था, वो आज खुद ही किसी का बाप बन गया। जब सभी चीजो का नीचे गिरना ही तय है तो उस पंक्षी ने आकाश मे उड़ान कैसे भरी? इन सब के अलावा आप उस स्थिती के बारे मे सोचिए जब मानव जाति पशु तुल्य थी, जहां ना तो कोई ऐसा समाज था जिसके नियमो को हमे मानना पड़े और ना ही ऐसा कोई परिवार था जिससे हमारा जुड़ाव बना रहे। इस स्थिती के बाद भी एक औरत जो नये शिशु को जन्म देती थी उसमे आदिकाल से वो ममत्व कैसे आया जो आज हम देखते है। वो जानवर जिसे हम आज भी इसी बात से जानते है कि उनका कार्य केवल पेट भरना ही होता है अपितु इसके बावजुद भी वो कैसे संगठन मे कार्य करने की शक्ति रखते है। अब आप जरा अपनी तर्क कि कसौटी पर इन सभी उदाहरणों को रखकर इस बात पर विचार करने कि कोशिश किजिए की उस पेड़ मे जान, चिड़िया के पंख मे उड़ान औरत के हृदय मे ममता और तो और पशुओ मे एकता कैसे आई होगी? बेशक ही ये सारे करतब किसी रचयिता कि रचना की अभिव्यक्ती से ही बने हैैै, जिस रचयिता को आज हम ‘‘भगवान‘‘ के नाम से जानते है। आप भले ही उन दस हाथो के साथ अनेको शस्त्र धारण करने वालेईश्वर को अस्वीकार कर दे परंतु आप कभी भी उस तत्व को नाकार नही सकते जिसने हम सबको बनाया है। कोई उन्हे मंदिर मे पुजता है, और कोई उन्हे खुद मे देखता है। परंतु बात यहां उस रचनाकार के अस्तीत्व की है जिसे कोई झुठला नही सकता।
अब आप प्रकृति के स्वररूप, विविध प्रकार के जीव जंतु और स्वयं के अस्तित्व को देख कर निष्कर्ष के रूप मे यह कह सकते है कि एक ऐसा तत्व जरूर है जिसने हम सभी को बनाया है और शायद उसी तत्व को हमने ‘‘ईश्वर‘‘ बताया है। अब हम ‘‘क्या तुम हो भगवान‘‘ के उलझन से काफी उपर उठ कर एक अटुट विश्वास की सीमा पर पहुंच चुके है जिसे हम ‘‘हां तुम हो भगवान‘‘ कह कर पुर्ण रूप से स्पष्ट कर सकते है। निम्न पंक्तियां उस परम तत्व को समर्पित है जिसने संपुर्ण जगत की रचना कि -
कभी दरिया के भीतर भी, समंदर जाग उठता है
मिले सम्मान हिरे का, तो पत्थर जाग उठता है
मेरा ईश्वर तेरा अल्लाह, है मालिक एक ही सबका
तेरा ईश्वर मेरा अल्लाह,
है मालिक एक ही सबका
ज़रा तुम झांक
लो अंदर, खुदा खुद मे ही बसता है।