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वर्तमान युग में महिला की स्थिति:

"स्त्री" जो प्राचीन काल से ही शक्ति का प्रतीक मानी गई है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी ब्रम्हपुत्र, गंगा तथा भारत जैसे महान भूखंड के लिए "माता" जैसे पदनाम का प्रयोग किया गया है।वर्तमान में, ऐसा कोई क्षेत्र नही रह गया, जहा महिलाओ ने अपनी भागीदारी दर्ज ना की हो। फिर चाहे वह खेल में पी. टी. उषा हो, राजनीति के सर्वशिखर पर द्रौपती मुर्मू हो या अपनी बुद्धि से कंप्यूटर को भी चुनौती देनी वाली शकुंतला देवी हो, सभी ही क्षेत्रों में आज महिलाएं आगे बढ़ते ही जा रही है। पर इसके बावजूद भी हमारे समाज में आज भी एक ऐसा वर्ग है जो अभी तक शिक्षा, समानता तथा अवसर की पहुंच से कोसो दूर है। वर्तमान में जहां समाज का एक वर्ग महिला संबंधी अधिकारों के प्रति जागरूक है, तो वही दूसरा वर्ग अब भी अपनी पुरानी रूढ़िवादी सोच से ग्रसित है, जो अब भी यही सोचते है की महिलाओ का अस्तित्व उनके पिता से हैं और शादी के पश्चात उनके पति से। 

"सामाजिक असमानता" विचार की उत्पत्ति:

इस विषय पर अगर हम गौर से सोचे और इसकी शुरुवात को जानने हेतु इतिहास के पन्नों को पलटकर देखे तो हमे ज्ञात होता है की सामाजिक असमानता प्राचीन काल से ही हमारे समाज में व्याप्त है इसका उदाहरण पाषाण काल के मानवों द्वारा भीमबेटका में बनाई गई गुफा चित्रों से भी देखा जा सकता है। इन चित्रों में जहां एक ओर पुरुषों को शिकार हेतु हाथ में हथियार लिए जंगलों में घूमते दिखाया गया है, वही इससे ठीक विपरीत, महिलाओ को घर में खाना पकाते तथा बच्चे का पालन पोषण करते दिखाया गया है। अब हमरे मस्तिष्क में यह प्रश्न आना स्वाभाविक है, की क्या पाषाण काल में इस प्रकार की सामाजिक असमानता गलत है??? इसका जवाब आप, मैं और यहा तक की हम सब यही कह कर देंगे की इसमें कोई भी परेशानी नहीं है क्योंकि प्रकृति ने पुरुषों की बनावट ही ऐसी की है की उनके पास महिलाओ से ज्यादा शार्रिक बल है। अब हमारे जहन में दूसरा प्रश्न उठना उतना ही स्वाभाविक है जितना पहले प्रश्न का उठना था, की वर्तमान में भी तो यही हो रहा है की महिला घर में काम कर रही है और पुरुष बाहर, तो इसमें गलत क्या है? बेशक यह प्रथा प्राचीन काल के लिए उपयुक्त थी पर हमे अब समझना चाहिए कि परिस्थितिया बदल चुकी है अब वर्तमान में शर्रीक बल से ज्यादा मानसिक बल काम का आधार है और यही कारण है की बड़े से बड़े पद के चयन का आधार केवल शर्रिक बल ना होकर उस क्षेत्र विशेष की जानकारी होती है और मानसिक स्तर पर महिला और पुरुष दोनों ही एक समान है। उदाहरण स्वरूप प्राचीन काल में रचित उन वेदों को ले सकते है जिनकी रचना अपाला, घोषा, सिक्ता, विश्ववारा आदि विदुषी महिलाओ ने की थी। तो सुझाव के तौर पर हम ये कह सकते है, की पुराना समय चला गया है और इसी के साथ पुरानी परिस्तिथिया भी चली गई है तो अब ये वक्त आ गया है की मनुष्य भी अपनी पुरानी सोच छोड़ दे और नए सिरे से सोचना शुरू करे। 

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं:

वर्तमान में शहरीकरण, औद्योगिकरण और प्रदूषण के परिणाम स्वरूप लोगो के स्वस्थ में होने वाले गिरावट को देखा जा सकता है। जिसके परिणाम स्वरूप लोगो को कई सारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है और जब इन्ही परिस्थितियों का अध्यन हम महिलाओ को केंद्र में रख कर करते है तो यही समस्या और भी अधिक भयावह रूप धारण कर लेती है। जब एक युवा स्त्री 12 से 16 वर्ष के बीच में होती है तब से ही मसिकस्त्र का प्रारभ हो जाता है और अगर उन्हें पौष्टिक आहार न मिले तो पेट दर्द, पीसीओएस और कई सारे "mansturetionl desorder" का सामना करना पड़ता है जिसका उनके स्वास्थ्य पर बहुत घातक प्रभाव पड़ सकता हैं। और सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति तब उत्पप्न हो जाती है जब अस्पतालों में भी इसके इलाज हेतु बहुत कम सुविधा मौजूद है, क्योंकि लोग इस क्षेत्र में जागरूक ही नहीं है। और इसी मसिकस्त्रव से जुड़ी दूसरी बड़ी समस्या, इस दौरान उपयोग किए जाने वाले "pad, mansturetionl cup, tampons" इत्यादि है। इस चीजों का बाजार मूल्य 60 से शुरू होकर 320 तक है जो किसी भी गरीब परिवार की महिलाओं की पहुंच से कोसो दूर है। बीबीसी न्यूज द्वारा प्रकाशित एक आर्टिकल के मुताबिक "औरते मासिक धर्म के दौरान फटे पुराने कपड़े, अखबार या कागज़ का प्रयोग करती है और कुछ तो राख रेत इत्यादि का प्रयोग करने हेतु भी बाध्य है।" इसका प्रमुख कारण जागरूकता की कमी, सरकारी योजनाओं से अनभिज्ञत तथा अत्यधिक मूल्य का होना है जो एक गरीब परिवार शायद ही खरीद पाए। आज हमे जरूरत है की हम लोगो को इस क्षेत्र में जागरूक करे और अपने घर से ही इसकी शुरुवात करें।

तकनीकी और महिलाएं:

आज के युग में चोरी डकैती या लोगो की सुरक्षा का हास्य भौतिक रूप से नहीं अपितु सोशलमीडिया द्वारा किया जा रहा है। जिससे हम सब भली भाती परिचित है । जहां एक तरफ लोगो को फ्रॉडकॉल्स, फेकएसएमएस द्वारा लूटा जा रहा है, वही इसके दूसरे ही तरफ ए.आई. जैसी आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर लोगो को ब्लैकमेल किया जा रहा है, जिसका शिकार मुख्य रूप से महिलाएं हो रही है। एक समय तकनीकी के ज्ञान को वरदान समझा जाता था जो लोगो की जरूरतों को आसानी से पूरा कर देता था। पर वर्तमान में यही तकनीक ना जाने कितनी ही महिलाओ के जीवन का अभिशाप बन गया है। हमारी संस्कृति में मान सम्मान और प्रतिष्ठा को किसी भी लड़की की सर्वश्रेष्ठ संपत्ति कहा गया है और वर्तमान में ए.आई. के जरिए इसी गर्व पर प्रहार किया जा रहा है, जहा महिलाओ की फोटो का दुरुपयोग पोर्नसाइड जैसे असमाजिक जगत में किया जा रहा है जिससे वो खुद भी अनजान है । और जब हमारी रूढ़िवादी समाज की नजरे इस पर जाती है तो वह भी इस अधूरे सच के सहारे ही उस लड़की को बेशर्म, अश्लील और न जाने कितने ही अशोभनीय नामो की संज्ञा दे देता है। वर्तमान में हमे आवश्यकता है की हम लोगो में तकनीकी संबंधी जागरूकता बढ़ाए और साइबर संबंधी प्रत्येक आरोपी को कड़ी सजा दे वरना पिछले साल चंडीगढ़ विश्वविद्यालय में हुई घटना हर कस्बे में होने लगेंगी।

शार्रिक उत्पीड़न, बलात्कार, घरेलू हिंसा आदि:

कहा जाता है की, 6 महीने की बच्ची से लेकर 60 साल की वृद्ध महिला तक हर अवस्था में महिलाएं शार्रिक उत्पीड़न और बलात्कार जैसे दुष्कर्म का शिकार होती है और इस बात की सच्चाई का अंदाज प्रतिदिन समाचार पत्रों में वर्णित घटनाएं बताती है। समाचार में जहा हर रोज ऐसे कई सारे मामले उजागर किए जाते है, पर इसके बावजूद भी न जाने कितने ही मामले बिना इंसाफ के दबा दिया जाते है। समाजशास्त्र में महिला द्वारा आभूषण के रूप में पहने जाने वाले पायल की तुलना उस दायरे के रूप में की जाती है जो उन्हे चार दिवारी में बांधने का काम करती है और उससे बाहर निकलने की कोशिश करने पर यह जंजीर अपनी आवाज से सब को सूचना पहुंचा देती है की कोई औरत अपने मर्जी से चलना चाह रही है। अगर देखा जाए तो दिक्कत इस पायल में नही बल्कि उकने पीछे कार्यरत सोच की है। हाल में में भारत सरकार द्वारा ओल्ड एज विमेंस नाम से प्रकिशित एक पुस्तक में 60 से 90 साल तक की महिलाओ द्वारा अनुभव की जाने वाली परेशानियों का रिकॉर्ड तैयार किया गया है। यह रिपोर्ट हमारे मध्यभारत के 20 राज्यो की महिलाओ की स्थिति का आकलन कर बनाया गया है। इसी पुस्तक में उन महिलाओ का सर्वे करके यह ज्ञात होता है की 60% बुजुर्ग महिलाओ को शार्रिक मारपीट का सामना करना पड़ता है और ऐसा करने वाले ज्यादातर उनके अपने ही बच्चे है। उपरोक्त अकड़ो से हर व्यक्ति भली भाती परिचित है पर दिक्कत इस बात की है की जब सबको इस दुर्व्यवहार के बारे में पता ही है तो कोई विरोध क्यों नही करता ? क्यों वो अपनी आंखे बंद कर देते है जब सड़क में एक दरिंदा किसी बच्ची को बार बार चाकू से वार करके उसकी जान ले लेता है? क्यों व्यक्ति चुपचाप चीख सुनते है जब उनके पड़ोसी अपनी बीवी पर हाथ उठते है? क्यों वो तमाशा देखते है जब भरे बाजार में किसी लड़की को छेड़ा जाता है? ऐसे अनेकों प्रश्न हमारे सामने है जो इस तरह को घटना को प्रोत्साहन प्रदान करते है। आज हमे जरूरत है की हम अपने मूल्य, आचरण और प्रत्येक जीव मात्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझे और आवश्यकता पड़ने पर सच के साथ खड़े रहे ।

आगे का मार्ग:

उपरोक्त समस्याओं के अलावा शिक्षा, असमानता, न्याय से अनभिज्ञता आदि गई सारी समस्या आज भी हमारे समाज में व्याप्त है और इस स्थिति में सुधार सिर्फ एक सरकार या सिर्फ किसी संस्था की जिम्मेदारी मात्र नहीं है। अगर हम सच में बदलाव की इच्छा रखते है तो हमे खुद अपनी मानसिकता और अपने परिवार से इस बदलाव की शुरुवात करनी पड़ेगी। और ये शुरुवात ही हमारे समाज को एक नया रूप प्रदान करेगा।

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संदर्भिका:

  • Lucent publication written by Suneel Kumar Singh
  • Nitin Singhania Indian Art and Culture published by McGraw hill education
  • Ancient Indian History by R.S. Sharma Oxford University Press.
  • BBC News 2018 news.
  • Women and ageing; Invisible or Empowered by Helpage India 2023 Report 

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