समाज की हैं ऐसी सोच क्यो?
कहती हैं किन्नर को धरती पर बोज क्यो?
माँ-बाप ने जनम देकर कर दिया पराया
चक्का हिजड़ा किन्नर कितने नामो से चिढ़ाया
अपनो ने तोड़ दिये सारी रिश्तेदारी
रास्ते पर छोड़ दिया करने मगजमारी
दो राहो में बेबस हैं जिन्दगी मेरी
अस्तित्व के संघर्ष में हयात बनी कचहरी
किस इंसानो की हैं जिन्दगी में पूर्णता?
फिर भी सवालों से यह मुझको हैं भेदता
इंसान की शनाख़्त नही यह लिंग भेद जाति
मोहब्बत से भरी जिन्दगी, वही हैं एक ख्याति
माँगते हैं हम भी बराबर का दर्जा
दुआ से चुकाऐंगें तुम्हारा यह कर्जा