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चौथा खम्ब हो गया है पस्त
टीआरपी में हो रहा है मस्त
करने थे इसे बड़े से काम
बनाना था हिंद को स्वर्गधाम
पर यह तो खुद स्वर्गवासी हुआ
मानो सत्ताओं का अभिलाषी हुआ
गोएनका,माखन की जो परिपाटी थी
उस पर आगे बढ़ना था
अरे बढ़ना और निखरना था
पर तुम तो ऐसे झूल गए
इतिहास स्वयं का भूल गए
जब पत्रकारों ने सरकारों को शब्द बाणों से भेदा था
नतमस्तक हुए थे सब दिगंत
नेता हुए थे विनम्र
और सब गुंडों को जेलों में भेजा था
पता नहीं इतिहास को तुम भुला गए कैसे वीरों
जा बैठ गए तुम गोदी में
और सरकारी मुखपत्र हो गए रे वीरों
थूकेगा इतिहास और होगी रे लानत तुम पर
कलम उठा मेरे दिनकर
सत्ताओं से तू रण कर
इतिहास बना नहीं जाता
वीर कभी भी यूं झुककरजरा चीख जोर से तू भी अब
और थर्रा दे सरकारों को
बन फिर आवाज गरीबों की
और दिला अधिकार बेचारों को
है चौथा खंभा तू
ये दिखला दे सरकारों को
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