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ऐ ज़िंदगी तू इतना इठलाती क्यों हैं
ऐ ज़िंदगी तू इतना रुलाती क्यों हैं,
तुझें जानना इतना मुश्किल तो नहीं है, बस जो तुझे समझ गया वो खुशी-खुशी
ज़िंदगी जी गया,
ऐ ज़िंदगी तू इतना इठलाती क्यों हैं,
कैसी तेरी विडंबना है,जो पल मै खुशी और अगले ही पल मै दुख, कैसा है तेरा यह हिसाब-किताब
ना जाने कैसे तू यह सब कर पाती हो।
ऐ ज़िंदगी तू इतना इठलाती क्यों हैं,
अगर आये ज़िंदगी मै खुशी तो उस पल को ज़ीना अच्छे से और अगर आ जाये दुख तो नाखुश होकर ना रुक जाना तू ...
ऐ ज़िंदगी तू इतना इठलाती क्यों हैं,
यही ज़िंदगी की विडंबना है और यही है इसका खेल, इसको बैलेंस बनाये रखना तुम।
जब तक है येे ज़िंदगी इसको बनाये रखना तुम, यूही इसका सफर बनाये रखना तुम।
मुमकिन हो जायेगा हर ख्वाब तेरा बस रख भरोसा इस ज़िंदगी के सफर का।
ऐ ज़िंदगी तू इतना इठलाती क्यों हैं।