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खुद को व्यक्त करने से क्यों डरती हो,
सारा बोझ तराजू के एक पंगड़े में क्यों रखती हो,
कोई नही समझ रहा तो मत समझाओ ना,
इतनी बेचैन होकर क्यों विचरती हो||
उस व्याकुल मछली को क्यों पकड़ रही,
क्यों अपनी अग्रसर्ता को भंग कर रही,
जो तुम्हे समझते है, वो समझेंगे ही,
बाकी नासमझ ही सही||
काले घने बादल तो जमेंगे ही,
फिर बारिश के बाद छटेंगे भी,
इंतजार करो उस बारिश की,
सारे प्रश्नों के उत्तर तुम्हे मिलेंगे ही||
बस अपने नियमों और विचारो पे अटल रहो,
अपनी महत्वाकांक्षाओं की साक्षी बनो,
फिर वो दिन दूर नही,
जब लोग तुम्हारी राय लेंगे,
तुम,तुम ही रहो
और अगर अस्थिर है मन तो अस्थिर ही रहने दो।।

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