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कितना अच्छा होता, अगर जिंदगी बुढ़ापे से शुरू होती,
दिन पर दिन जवान होने और फिर बच्चा होने की खुशी अपार होती|
हाँ शायद थोड़ी रस्मे कम हो जाती,
पर क्या फर्क पड़ता है, मुरझाये हुए चेहरे पे मुस्कान तो बरकरार होती|
वृद्धा आश्रम के दरवाजे बंद हो जाते, सब बच्चा बन अपने बचपने मे लीन हो जाते,
सारे फुर्माईसे भी पूरी होती, कितना अच्छा होता अगर जिंदगी बुढ़ापे से शुरू होती।
देखो, आँखों की रोशनी चमकीली हो रही है, झुली हुई चमड़ीया जवान हो रही हैं,
कौन अपना है कौन पराया, इसका भी ज्ञात हो रहा
चिड़चीड़ा पन से निजात हो रहा।
कितना सुंदर दृश्य है ये, सब खुशहाल जी रहे हैं,
बूढ़े- बुजुर्गो के भी दिन बदल रहे है,
हर रोज मेरी ईश्वर से यही दुआ होती, कितना अच्छा होता अगर जिंदगी बुढ़ापे से शुरू होती।
अपने ही लोगो से तिरस्कार न होता, सबको छोड़ के जाने का एहसास न होता,
नवजात बन किसी दिन आँखे बंद कर लेते, इस दुनिया मे कभी आये थे ये ज्ञात न होता,
दुनिया नम आँखों से विदा कर रही होती,
वृद्ध था कह के उपहास न होता,
कितना अच्छा होता अगर जिंदगी बुढ़ापे से शुरू होती।।

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