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तू स्त्री है , ठहर जरा
सुन कड़वी सच्चाई यहां,
सतयुग हो, द्वापर युग हो
या हो कलयुग का युद्ध बड़ा।

तेरी ही चीखें होंगी
इन कायरों के बीच में
जब सुरक्षित नही थी तू
भगवान के ही युग में।।

खत्म हो सकता है राज
कौरवो के अहंकार का
तो स्त्री ही कारण होगी
कलयुग के विनाश का।।

अगर वो प्रेम की परिभाषा है तो
सर्वनाश का प्रतिबिंब भी
सीता का वेष है|
तो काली का रूप भी।।

मत छेड़ो उसे
वो अग्नि की ज्वाला है
एक बार जग गई तो
विनाश कहां रुक पाना है।।

फिर तो कृष्णा का इंतज़ार भी न होगा
और न दया की भीख
श्रृष्टि का विनाश होगा
और असुरों की चीख।।

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