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यदा यदा हि धर्मस्य
ग्लानीं भवति भरत
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य
तदात्मनम् श्रीजाम्यहम्
परित्राणाय सौधुनाम्
विनशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्था पन्नार्थाय
संभवामि युगे युगे।

जब भी ये श्लोक किस ने गया होगा तब तब हमें बस एक ही नाम हमरे होंटो पे आया होगा वो है "कृष्ण "
सबसे सुंदर और नटखट बालक और कोई नहीं बस कृष्ण
मनमोहन नाम से भी जानते थे सब उनको
सबको अपनी मोहो मैं बांध के जो रख ते थे।
गोपियों के मटके फोड़ा करते थे
मगर ऐसे सकल बना ते थे जैसे कुछ नहीं जानते थे।
माखन चोरी करके खाते थे
मगर योशादा मां के आंखों के दुलारे थे ।
कहीं वस्त्र चोरी तो कहीं गोपियों के संग खेला करते थे
कंस मामा के भेजे हुए हर राखसोस का अंत करते थे ।
राधा मां से प्रेम की प्रीत लगाए थे
उनको अपनी प्रेमिका बनाए थे ।
कंस मामा के अंत के बाद बस गए जाके दुआरका मे इश्लिये दुआरकाद्धिस भी उनको कहे ते थे
गोपोपुरो की दिल की धड़कन बस श्री कृष्ण हीं हर इंसान कहते थे
द्रौपदी की वस्त्र दान करके कौरव सभा में उसकी इज्जत रख दिए थे
महाभारत में अर्जुन की सारथी बनके धर्म को जीता दिए थे
अर्जुन को अपनी विश्व रूप दिखाए थे
धर्म की स्थापना करने के लिए नजाने कितने अपनो को खोए थे
श्री कृष्ण का गाथा कहते कहते नहीं खत्म होगा
क्यूंकि उनशे बड़ा निराला और प्यारा जगत में और कोई नही होगा ।

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