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ऐ मेरे हमसफर,जीवन की इन नवीन राहों पर
चलना मेरा साया बनकर।
रूठूं अगर तो मना लेना मुझको मगर
छोड़ न देना कांटे बिछाकर।
नए रिश्ते, नए ओहदे,नई जिम्मेदारियां निभाने के  
लिए साथ देना होगा तुम्हे पग पग पर।
मेरे आत्मसम्मान का मान रखना, ठेस ना पहुंचाना         
जीवन के किसी मोड़ पर।
मेरी गलतियां बताना,अपने सुझाव रखना मगर,
मेरे विचारों को भी सुनना ,फिर फैसला लेना
सोच  समझकर।
मेरी हर जायज जरूरत पूरी कर देना हंसकर।
बराबरी जा दर्जा देना ना समझना कमतर।
मेरी उलझनों को सुलझाना उमरभर।
एक दूसरे की कमियों को करेंगे नजरंदाज तभी तो      
प्यार रहेगा एक दूसरे के परस्पर।
जीवन की बगिया को फूलों सा महकाना तभी तो मैं भी रख पाऊंगी तुम्हारे आशियाने को सहजकर।
तुम्हारी गलियां छोड़ने पड़े,ना देना ऐसा कोई अवसर।
परिस्थितियां भी बदलती रहेगी,वक्त भी बदलता रहेगा, मगर दोनो को साझेदारी से ही बनेगा आसान हमारा सफर।
मुझे डांट भी देना, गुस्सा भी करना मगर,
सबके समक्ष नही केवल कक्ष के भीतर।
मैं मर जो जाऊं अगर,तो मेरी स्मृतियों को सजाए रखना अपने दिल पर।
जो काबुल हो ये ख्रतनामा तो मैं इंतजार कर रही हूं सजधज कर।।

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