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अरे, तुम्हें पता है अब मैं लिखने लगी हूं
शब्दों को पिरोकर काव्य की माला पिरोने लगी हूं
एक दूजे की जिंदगी को कहानियों में गढ़ने लगी हूं
खुद से थी अनजान अब परिचित होने लगी हूं
अरे, तुम्हें पता है अब मैं लिखने लगी हूं।
कागज कलम से शब्दों का जाल बिछाने लगी हूं
दिल की कश्मकश को सुकून में सुलझाने लगी हूं
बोल जो ना पाती थी अब सब की व्याख्या करने लगी हूं
अरे, तुम्हें पता है अब मैं लिखने लगी हूं।
लफ्जों के सहारे लोगों में पहचान बनाने लगी हूं
दर्द की दुनिया में वर्णों से सुख खोजने लगी हूं
संवेदनाओं की धार में बहकर वेदनाओ को भूलने लगी हूं
अरे तुम्हें पता है अब मैं लिखने लगी हूं
कल्पनाओं को परे छोड़ यथार्थ में जीने लगी हूं
सपनों के रंगीन परदों को चीरकर वास्तविक दुनिया में आने लगी हूं
अधूरी अधूरी सी जिंदगी को पूर्ण करने लगी हूं
अरे तुम्हें पता है अब मैं लिखने लगी हूं।।।