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आज फिर एक असफलता फिर एक नाकामयाबी
हे ईश्वर! क्या मेरे कर्मो में है इतनी खराबी।

बरसों बीत गए मंजिल तक पहुंचते पहुंचते
आज जब मौका मिला तो पथरीले बन गए रस्ते।

थक गई हूं अपमान को सहते सहते
कभी लोग भी थके मेरी प्रशंसा करते करते।

रोज नए सांचे में ख्वाईशे है ढलती
पर जिंदगी ढांक के दो पात ही चलती।

परिश्रम से पीछे नहीं हटती 
फिर भी असफलता ही हाथ लगती।

कब करूंगी मैं भी सफलता के रथ की सवारी
आखिर कब आएगी मेरी भी बारी।।

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