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वक्त की साख से एक फूल गिर गया
अपनी वेदनाओं से तंग आत्मघात का सहारा लिया|
पीड़ाओं को चौबीस पन्नों में समेटता गया
नष्ट कर अपने शरीर को संघर्ष को विराम दिया।
पीड़ित होते पति भी ऐसा कुछ समझा गया
साल के अंत में औरतों की क्रूरता और कानून की अव्यवस्था के बारे मे बता गया।
कलयुग में सर्वत्र फैला अन्याय और भ्रष्टाचार
महिलाएं भी भूल गई शिष्टता और सदाचार
जाने कब बदलेगा अंधे कानून का व्यवहार
बेचारा मौत के बाद कर रहा इंसाफ का इंतजार
हालातो की धुंध से तंग ,पहना फांसी का हार
ईश्वर से विनती है मिले उसे न्याय का द्वार।

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