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बनकर भैया भाभी की छाया
चौदह वर्ष तक जो ना सोया
वह लक्ष्मण ही था।
छोड़ वैभव राजसी मोह माया
वनवास में भ्राता की कुटीर को सजाया
वह लक्ष्मण ही था।
भाभी मां की ढाल बनकर
रक्षा की सदैव नजरे झुका कर
वह लक्ष्मण ही था।
श्री राम की आज्ञा को जब किया अनसुना
तब अयोध्या के खातिर मृत्युदंड को चुना
वह लक्ष्मण ही था।
स्वार्थ का परित्याग समर्पण की भावना
महाबली इंद्रजीत का किया डटकर सामना
वह लक्ष्मण ही था।
भाई के प्रति समर्पित जीवन जिया
कर्तव्य निष्ठा से हर समस्या का समाधान किया
वह लक्ष्मण ही था।
गांधरी जिसका धनुष गुड़ा केश कहलाया
लोकहित ,धर्म परायण के साथ सांसारिक जीवन को निभाया
सच्चे भ्राता,सच्चे सहचर का पाठ सिखाया
वह लक्ष्मण ही था।
माता सीता की रक्षा के लिए खींची लक्ष्मण रेखा
लांघ न पाया जिसे रावण जैसा योद्धा
ऐसी उज्जवल छवि के किरदार को कैसे कर दे हम अनदेखा।

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