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नफरत की दीवार को प्यार की पिचकारी मार कर
ढहा देना इस भीत को सुलह का रंग लगाकर।
अपने अहम को होलिका दहन में विसर्जित कर
हृदय की मलीनता को उसमें डालकर राख कर।
मानवता के गुलाल से रंग दो सब का मन
स्नेहा की गुझिया से करो सबका अभिनंदन।
प्रहलाद सी भक्ति कर लो कर लो उसके जैसा भजन
हृदय में जो छाई घृणा की धुंध,फिर होगा उसका छटन।
गरिमा को ना ठेस पहुंचे संभाल कर चलना है
बड़ों को देखकर सम्मान ,छोटों से शरारत करना है।
जात पात का भेद भुलाकर एकरस में डूबना है
प्रेम के सरोवर में स्नान कर निराशाजन्य दूर करना है।
आप बहुत हो गया लड़ना और झगड़ना
अब तो बस यह ठाना है
अबकी होली में दूरियां दिलों की मिटाना है।