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एक बरस वाट जोहे तिहारी
तुम आ गए हम हैं आभारी
गणनायक ,करके मूषक की सवारी
हे उमा सुत ,तूने हर बाधा हारी।
दूब मोदक तोरण रंगोली सब हो गई तैयारी
विद्या विनय प्रदान कर,अब है तुम्हारी बारी
सुख समृद्धि देकर महकाना जीवन की क्यारी
दुख क्लेश सब मिट जाय यही विनती हमारी।
पीत वसन, सर मुकुट मूरत अति मनोहारी
पशु सिर धारण किए अदभुत लीला तुम्हारी
बांझन को संतान देत बना देते महतारी
महाभारत के लेखक महिमा तेरी न्यारी।
हे विघ्नकर्ता, सिद्धिविनायक श्री गजानना
अबकी बार सब विघ्न हर जाना
जन को मानवता का सबक सिखा जाना
असुरक्षित है बेटियां उनकी लाज बचा जाना
अनाचार को दूर कर संसार शुद्ध करते जाना
संस्कृति और संस्कार की कृपा बरसाते जाना
ज्ञान की ज्योति हर हृदय में जगाते जाना
भटके हुए प्राणी को सही राह दिखाते जाना
दुष्टों का संहार कर धरा को भयमुक्त करते जाना
पूर्ण हो सबकी कामना ऐसी आशीष देते जाना
हेय को गंदी वासनाओं से परे लेते जाना
हर पल तुम्हे अराध्य ये आशीर्वाद देते जाना।।
कैसे करूं तुम्हारे गुणों का व्याख्यान
तुम तो हो सकल गुणों की खान।
अद्वितीय काया में छिपा संपूर्ण ज्ञान
कम बोलो अधिक सुनो सिखाते वृहद कान
नन्हे नन्हे पग सिखाते बनना धैर्यवान।
एकदंत होकर अपूर्णता को करते स्वीकार
सिखाते हर परिस्थिति का करो सम्मान।
बड़ा सिर करता बड़ी सोच का विस्तार
सिखाते कैसे करते सफलता का आव्हान।
अच्छा बुरा जैसा भी हो व्यवहार
विशाल उदर में छुपाकर बनो तुम क्षमावान
जीवन का तरीका बताते ऐसे तुम भगवान।।
क्या गाथा गाऊं तुम्हारी गणपति
संतोषी के जनक तुम हो बुद्धि के अधिपति।
मूषक की धृष्टता को देखा पर ना किया उस पर वार
बुद्धि की क्षमता से हो है उस पर सवार।
तुम्हारे अनुनय में कितना बल है
प्राप्त हुआ जो मुझे वो इसका फल है।
तुम्हारा रूप ही जीवन शैली का दर्शन है
मन मोहने वाला अति सुंदर मन भावन है।
श्रेष्ठ भावों का करते सृजन है
हृदय से मनोविकारों का करते शमन है।
अनमोल कांचन तुम्हारा ये आगमन है
जो समाज में बढ़ता अपनापन है।
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