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फाल्गुन मास जब तुम आते हो
फिज़ा में परिवर्तन लाते हो।

तपने लगती है धरा
जनजीवन आलसी हो जाए जरा।

उतारकर कोहरे की चादर
पहन ली संदली ब्यार

सरगोशी सी अंग अंग में छाए
मादकता लिए हृदय में कामुकता समाए।

झंकृत हो उठे मन के सब तार
चहुं ओर है उमंग ,गाए राग मल्हार।

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