मुझे भी अपनी पहचान बनानी थी भाई
पर ये कैसी विकट परिस्थिति थी आई
मेरे अस्तित्व को अपनो ने ना अपनाकर
कर दिया मुझे अपने जीवन से दरकिनार
क्योंकि मैं उस श्रेणी में आता था जो न नर था न नार ।
विकराल परिस्थितियों से घबराकर ना मानी मैने हार
ताली न बजाऊंगी,अपने लिए बजवाऊंगी इसे बनाया जीवन का आधार।
गणेश से गौरी बनी, दिया जीवन को नया आकार
ट्रांसजेंडर समुदाय को दिलाया विशेष अधिकार
गायत्री की मां बनी, यतीम बच्चों से बना परिवार
लोगों का नजरिया बदला,मुझे दिया प्यार और सत्कार।
सिमट गई थी मेरी दुनिया अब मिला विस्तार।
ये है गौरी सावंत के संघर्षी कहानी का सार।।