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सर्द रात में कांपी थी काया बिगड़ा था इसका स्वरूप
अलसाई सी थी काया मिला इसे स्फूर्ति का रूप
जब भास्कर आगमन पर बरामदे में आई गुनगुनी धूप।
कोहरे की मार से अधखिला था प्रभात
नभ ढका बर्फ की चादर से ,शीत लहर का भी था वज्रपात
दुबक के घरौंदे में बैठे भगनी और तात।
प्रकाश की किरण ने पहर की गति को संभाला
हर मुरझाया हुआ फूल फिर से खिला
परिंदे चहके, फसले लहराई ,मानुज कार्य पर निकला।
राहत मिली शीत से ,हुआ उष्ण का एहसास
दबी हुई सीलन को खुशबू मिली आसपास
चहुं ओर प्रकृति बिखेरती अपने अलग-अलग लिबास।
सर्दियों की यह गुनगुनी धूप हर्ष का कारण बन जाए
आकाश की ललिमा से सुखों की गर्माहट आए
ऐसे ही जन-जन के प्राणी खिल खिलाएं।