गुरु ही होता है परमात्मा का स्वरूप
जो हमे सिखाने आता बनकर मानव का रूप।
दुनिया के चक्रव्यूह से दूर,ले जाता निजधाम
कर्म काट कोयला करता,वो भी निस्वार्थ निष्काम।
गुरु के सानिध्य में जो हर पल है रहता
गुरु भी उनके अंग संग सदा ही रहता।
ढाल बनकर उसकी संभाल है करता
कष्टों का निवारण कर,दुखों को है हरता।
गुरु ही तो है हमारे जीवन का आधार
जो जीवन को देते एक विशेष आकार।
गुरु रूपी नाव के हम हैं ऐसे सवार
जिसे गुरु नही छोड़ता बीच मझधार।
तभी तो ये धरती चीख चीख करे हुंकार
गुरु जो ना होते जग में,तो जल मरता संसार।
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