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जिम्मेदारियां ने पंख काट दिए ना हुआ विस्तार
कर्तव्य के पथ पर चलते संभाला गृहस्थ जीवन का कार्य भार
कभी बेलन,कभी झाड़न, कभी कुकर की सीट करें पुकार
कभी मातृत्व का दायित्व,तो कभी कोई तीज त्यौहार
हर परिस्थितियों को संभाला,सहज किया स्वीकार
ना चाहे सोना ,ना चाहे चांदी, ना कोई पुरस्कार
स्वयं के लिए वक्त मांगती हूं चाहूं एक इतवार
नींद की अठखेलियों से खेलूं, मीठे सपनों का हो संचार
जहां जीवन की रागनी हो प्यार की हो झंकार
किनारा मेरे सुकून का बस इतना चाहती यह नार।

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