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क्रूरता का पहने मुखौटा मानवता का किया पतन
नारी तू नारायणी, अनुचित लगता अब ये कथन।
पहले स्त्री पति के लिए क्षमायाचना और करती थी मनन
अब स्वयं अपने हाथों से करती हनन।
अच्छा नहीं लगता उसे अब शादी का बंधन
भूल रही है विवाह के सातों वचन।
कलयुग में नारी का रूप दिख रहा अप्रत्याशित
अजब गजब देख करतब सब हो रहे अंचभित।
सभी माता पिता दिख रहे चिंतित
सोचते , क्या हमने परवरिश की अनुचित?
क्या अपनी ज़िम्मेदारियों का नहीं किया निर्वहन?
जेहन में उठ रहे हैं कई प्रश्न
अभी ये समझ ले सभी जन
विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को ना करे जबरन
पहले देख ले अपने बेटे बेटियों का चाल चलन
संस्कार, संवाद पर ध्यान दे सभी परिजन।।

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