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कुछ ख्वाहिशें नहीं होती पूरी
 हर खुशी इसके बिना लगती अधूरी।
मन की कसक दबी रहती
ना उड़ेली जाती ना कहीं जाती ।
कई कोशिशें के बावजूद ख्वाब अधूरा
मुकद्दर साथ ही नहीं देता हमारा।
पूर्णता के मुकाम को हासिल करना
उम्मीद के दिए का बुझ जाना।
मन अनमना सा थमा थमा सा है
अधूरी ख्वाइशों का किवाड़ खुला खुला सा है ।
जाने कितनी सफर की परीक्षाएं हैं
मंजिल मिलेगी या सिर्फ यातनाएं है।
खुशियां किस्मत में आयेंगी कि नहीं
ख्वाहिश पूर्ण के इंतजार में झुर्रियां त्वचा से जाएंगे कि नहीं।
निस्तेज ,निढाल हो गया ख्वाइशों का चेहरा
जाने कब बंधेगा उत्साहों का सेहरा।

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