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लेखन के प्रति हुआ ऐसा लगाव 
एक प्रिय मित्र की तरह जैसे हुआ जुड़ाव।
मित्रता हो गई वर्णों से शब्दों का हुआ बहाव
भावनाओं को अभिव्यक्त करती गई गढ़ने लगी सुझाव।
खाली खाली सा था घरौंदा मेरा 
कविताओं कहानी और लेखों ने ऐसा घेरा 
घुप्प अंधियारी रातों को मिल गया सवेरा।
जिंदगी के कैनवास पर खुशियों के रंगों को खोजती
अब हर तस्वीर में उत्साह के रंगों को उकेरती
दर्द के बादलों को खुशी के फुहारों में समेटती।
अज्ञात था खुद का अस्तित्व 
लेखनी में झलकता स्वयं का व्यक्तित्व 
अपूर्ण स्वप्न को मिल गया पूर्णत्व।

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