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हर माह रक्त के थपेड़े लिए आती तुम
साथ में ऐंठन,दर्द,चिड़चिड़ापन लाती तुम
कभी एक पखवाड़ा पूर्व संदेशा देती तुम
कभी बिना समाचार दस्तक देती तुम।

तुम्हारे आगमन पर निढाल,कमजोर और बन जाती बेचारी
पीड़ा की तड़प से मुरझा जाती मेटी जीवन की फुलवारी।

टूट जाती है तन मन की हर एक क्यारी
तुम्हारे कारण कई ख्वाइशे,आशाएं रह गई अधूरी।
माना तुम्हारा साथ उपवन को फलीभूत करने के लिए है बहुत जरूरी
तुमने मुझे वो सुख दिया जिससे मैं बनी महतारी
पर अब चालीस पर के बाद बना लो मुझसे दूरी
समापन कर दो आना मेरे बगिया में तुम माहवारी।

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