एक बरस बाद मायके की दहलीज में कदम रखा 
मन ने खुशी के सारे व्यंजनों को एक साथ चखा।
जिम्मेदारियों से मुक्त स्वयं को जांचा और परखा
ऊर्जा व उत्साह से युक्त स्वयं को दिया आजादी का चरखा।
अपनत्व से परिपूर्ण मिला प्रेम भरा आशियाना
ओढ़ के स्नेह की चुनर गाऊं प्यार भरा तराना।
खत्म हुआ यहां कुंठा जनित आवेग भी
थम गया यहां अश्रुमय प्रवेग भी
नीद का मिलता भरपूर सहयोग भी।
कुचलते नही छोटे छोटे ख्वाब ना होता रूंदन 
हृदय की गहराइयों से होता सादर अभिनन्दन
हंसी ठहाके मौज मस्ती होता खूब मनोरंजन।

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