"मनुष्य जन्म अनमोल रे इसे माटी में ना रोल रे "यह महज एक पंक्ति नही अपितु जीवन का सार है। यह मनुष्य जन्म हमें चौरासी लाख योनियों याने जन्मों के भुगतान के पश्चात मिला है। इसका मतलब हम कभी जलीय ,कभी थलीय जीव तो कभी कीट पतंगे और कई ऐसे जीव जिनके तो हमने कभी नाम ही नही सुने है हम उस योनि में भी जन्म ले चुके है। इसमें पेड़ पौधे भी शामिल है।कई पेड़ों की उम्र तो हजारों वर्ष होती है।अब सोचों कितनी कठिन परिस्थितियों से गुजरकर यह मानस देह प्राप्त हुई है।तो इस जीवन को सार्थक रूप से इस्तेमाल करें। बच्चे पैदा करना,भोजन का प्रबंधन,विचरण ये सब तो जानवर भी करते है।जब हमे कुदरत ने अलग बनाया है।ऐसी देह दी है जिसमे स्वयं ईश्वर निवास करते है।इसलिए मनुष्य देह को नर नारायणी देह भी कहा गया है। हमारी आत्मा परमात्मा का ही रूप है जो अपने स्वामी से बिछड़ गई है।उसे अपने असली घर पहुंचना है। आइए इसे बर्फ के उदाहरण से समझते है।
जिस तरह बर्फ है तो पानी का रूप
उसी तरह आत्मा है तो परमात्मा का रूप।
पानी को मिलता है फ्रिज रूपी घर
वैसे ही आत्मा को मिलता है देह रूपी घर।
पानी जमकर बर्फ का लेता आकार
आत्मा राम में रमकर सपना करती साकार।
बर्फ पिघलकर अपना मूल रूप धारण करती है।
आत्मा सिमरन कर अपना मूल रूप परमात्मा को धारण करती है।
हमे मनुष्य जन्म चौरासी से मुक्ति पाने के लिए ही मिला है। इसका ये मतलब नही है कि,हमे घर छोड़कर जंगलों और पहाड़ों में बसना है। हमे जीवन यापन के लिए कोई कार्य करना है। दुनियादारी के फर्ज भी निभाना है। हमें अपना कर्तव्य निर्वाह करते हुए ही प्रभु भक्ति में लीन रहना है। यह जीवन तो एक रंग मंच है और हम अपने-अपने किरदार निभा रहे हैं और हमें अपने किरदार बखूबी से निभाना भी है पर उसके चरित्र के बंधन में बंधना नहीं है। और यह तभी संभव है जब हम मोह माया के बंधन को छोड़ेंगे।
जब छोड़ोगे मोह माया के बंधन
तभी थमेगा चौरासी का आवागमन।
जीवन के रंगमंच के तुम हो ऐसे कलाकार
जिसे कुदरत ने बनाया है विवेक से मालदार।
तो अपनी बुद्धिमता का प्रयोग कर
अपने सह कलाकारों के साथ सहयोग कर
ना उनके मोह में फंसकर
अपनी जिंदगी खराब कर
मोह करना है तो उसे परमात्मा से कर
जो ना साथ छोड़ेगा तेरा ,साथ निभाएगा जिंदगी भर।
अब सवाल आता है कि इस चौरासी के चक्र को कश्ती में डूबे बिना कैसे पार लगाया जाए तो जवाब एक ही है भक्ति और भक्ति ।और यह केवल मनुष्य के जामे में ही संभव है । यह भक्ति हमारी रूह की पुकार है ।हमारी आत्मा का भोजन है। आइए अब जाने की आत्मा को तृप्त कैसे करना है?
लोग कहते हैं हम तो प्रतिदिन मंदिर गुरुद्वारा वगैरह जाते हैं हम हनुमान भक्त हैं राम भक्त हैं माता के पुजारी हैं।यह सब तो ठीक है अच्छी बात है हमें श्री राम श्री कृष्ण की शिक्षाओं का अनुसरण करना है लेकिन भक्ति करने के लिए हमें एक जीवित गुरु की आवश्यकता है। जैसे कोई बीमार है तो उसे मौजूद डॉक्टर ही उपचार कर सकता है जो बहुत काबिल डॉक्टर था लेकिन वह इस दुनिया में नहीं है वह तो हमारा इलाज नहीं कर पायेगा इसका ज्ञान हमारे इलाज में काम जरूर आएगा उसका आविष्कार हमारे लिए प्रेरणा बन सकता है। पर हमारा इलाज उसे डॉक्टर के द्वारा संभव नहीं है हम एक और उदाहरण से इसे समझ सकते हैं हमें कोई डिग्री हासिल करनी है तो हम स्कूल कॉलेज में दाखिला लेंगे उसके शिक्षक हमें अध्ययन करवाएंगे तो जो हमारे डिग्री हासिल करने में हमारी मदद करेंगे बिना गुरु के तो यह संभव नहीं है हम मीराबाई के पद को पढ़ते हैं कबीर जी के दोहों को पढ़ते हैं हम गुरु ग्रंथ साहब पढ़ते हैं पर पढ़ने से क्या होगा उसे समझने वाला तो कोई होना चाहिए जो हमें रूहानियत का पाठ पढ़ा सके।
जन्म से मृत्यु तक जीवन के हर क्षेत्र में एक गुरु की आवश्यकता होती है वैसे ही भक्ति करने के लिए एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता होती है जो हमें मोक्ष के द्वारा तक पहुंचा सके ।अब यह मोक्ष क्या है ?और हमें वहां क्यों पहुंचना है?
जब हमें जन्म मरण से छुटकारा मिल जाता है अर्थात हमारी आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है तो इसे मोक्ष कहा जाता है ।फिर हम इस दुनिया में पेड़ पौधे पक्षी मनुष्य बनकर नहीं आते हैं चौरासी योनियों से मुक्ति मिल जाती है ।जो केवल मानव योनि में ही संभव है इसलिए मनुष्य जन्म अनमोल रे कहा गया है ।हम व्यर्थ के आडंबरों में इस जीवन को मिट्टी में मिला रहे हैं ।लोग इसी गफलत में जी रहे हैं कि, इस जन्म में तो ऐश कर ले अगला जन्म किसने देखा है ? सही है अगला जन्म मनुष्य का तो नहीं मिलेगा तभी तो कहते हैं इसी जन्म में ही भक्ति कर ले। मनुष्य जन्म का उद्देश्य ही मोक्ष की प्राप्ति है।
आप सोचेंगे कि हम सारे दिन प्रभु भक्ति में लीन रहेंगे तो दुनियादारी के काज कैसे सिद्ध होंगे। बेशक आप अपने फर्ज निभाइए जीवन में एक मुकाम हासिल करिए ।साथ में ईश्वर की स्तुति भी करना ना भूलिए ।स्वार्थ भी बनेगा परमार्थ भी बनेगा एक बार प्रयास तो करिए।
अब विषय को गुरु की ओर ले चलते हैं गुरु कौन है ?हम असली गुरु की पहचान कैसे करें?
गुरु परमात्मा का ही रूप होता है जो मानव वेश में आकर हमें अपने निज धाम जहां से हम आए हैं वहां ले जाता है। गुरु ही वह कुंजी है जिससे मोक्ष रूपी ताला खुलता है।
बस हमें सही गुरु की पहचान करनी है जो गुरु दान दक्षिणा मांगता हो चमत्कार की बात करता हो वह एक सिद्ध पुरुष है और वह रिद्धि सिद्धियों में उलझा होगा इससे आपका भटकाव होगा।
जो दुनियादारी में रहकर हक हलाल की कमाई करता हो नि स्वार्थ सेवा करता हो जो चमत्कार की जगह दुखों से लड़ने की प्रेरणा देता हो वही एक सही गुरु है।
हम मीरा जी का एक पद सुनते हैं पायो जी मैंने राम रतन धन पायो यह राम नाम वही है जो हमें एक आध्यात्मिक गुरु दीक्षा के रूप में देते हैं। वे कल्पना नहीं यथार्थ को महत्व देते हैं। हमसे भजन सिमरन करवा कर हमें उस अवस्था में पहुंचा देते हैं जहां पर मीराबाई ने पहुंचकर यह पद लिखे हैं।
तो आइए हम एक मौजूदा गुरु की सानिध्य में सांसारिक और आध्यात्मिक दुनिया में संतुलन बनाते हुए भक्ति की अवस्था प्राप्त करें और मनुष्य जीवन को सफल करें।
यह मानव की रीत है कि कसुख आए तो सोना है दुख आए तो रोना है पर अब बस ये ठान लो अगला जन्म नही लेना है।