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हे भटके हुए प्राणी क्यों भटकता इधर-उधर
उचित मार्ग मिलेगा तुम्हें आध्यात्मिक के पथ पर।
हृदय की शांति, मन का सुकून और हर बात में सबर
विनम्रता और धैर्यता के गुण मिलेंगे इस दर पर।
जीवन की अनसुलझी पहेलियों का मिलेगा उत्तर
स्वार्थ भी बनेगा परमार्थ भी बनेगा तो प्रयास तो कर।
दुख पीड़ा और कष्ट तो मिलेंगे तुझे हर डगर
पर फिर सामना तू कर पाएगा डटकर
विफलता से ना घबराएगा आगे बढ़ेगा निरंतर।
क्योंकि सागर जैसा विस्तृत आध्यात्मिक अध्ययन
ईश्वर के प्रति अविरल प्रेम भक्ति का पावन वंदन
जिसके बिना अपूर्ण है मनुष्य का जीवन
ना उम्र की कोई सीमा है ना जन्म का बंधन
किसी भी अवस्था में कर सकते हैं प्रभु मंथन।