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परातंत्र के पिंजरों को पार कर, अब है उड़ान भरी
आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर, मैं पापा की परी।
आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहूंगी,ना सहमी और डरी
पुरुषों को पछाड़,हर मैदान मे अब उतरूंगी खरी।
स्वतंत्रता के पथ पर,करके सफलता की सवारी
संग्राम की रणभूमि पर,देना है टक्कर करारी।
सुकोमल धरती को सुदृढ़ भूमि बनाने की है तैयारी
उपवन ऐसा होगा जिसमें मजबूत रहेगी हर क्यारी।
अपनी जिंदगी की रानी बन ,ना होगी किसी की पहरेदारी
छोड़ संकोच के बंधन,होगी निर्भीकता की जिम्मेदारी।।।