Image by ASAD NAZEER from Pixabay रोज-रोज सुनकर सासू मां के प्रवचन
बन गई अब मैं परिपक्व दुल्हन।
दही को मथ कर बना देती मक्खन
हर ऋतु के स्वागत के लिए करती प्रबंधन
बन गई अब मैं परिपक्व दुल्हन।
पाक कला में करती नित नवीन सृजन
बाहरी कामकाज में भी ना आती कोई अड़चन
बन गई अब मैं परिपक्व दुल्हन।
अतिथियों के सत्कार के लिए झट बना लेती अब व्यंजन
समय निकालकर कर लेती अब थोड़ा अपना मनोरंजन
बन गई अब मैं परिपक्व दुल्हन।
व्यवस्थित रखती घर संभलकर रखती बरतन
देवरानी नंद और सास से ना होती अब अनबन
बन गई अब मैं परिपक्व दुल्हन।
उलझे केशो से लेकर सुलझा देती सब उलझन
समझ गई कैसे मजबूत होती रिश्तो की जकड़न
बन गई अब मैं परिपक्व दुल्हन।
मित्रता कर ली गंभीरता से नहीं करती अल्हड़पन
मायके की गलियों को याद कर नहीं करती रून्दन
देख मेरी काया पलट पतिदेव भी करते समर्थन
हां हां अब तुम बन गई परिपक्व दुल्हन।
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