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समुद्र मंथन से जहां बूंदे गिरी अमृत की
उस स्थल से शुरुआत हुई इस आयोजन की।
जब ग्यारह वर्षों का होता समापन
तब होता पूर्ण कुंभ का आयोजन।
निर्धारित होता सूर्य चंद्रमा और बृहस्पति के आधार पर
तब संगम होता सत्व बुद्धि से ,इड़ा पिंगला नाड़ियों को सुषुम्ना में कर।
अमरत्व के इस मेले के स्थल है चार
प्रयागराज उज्जैन नासिक और हरिद्वार।
जब बृहस्पति मेष राशि व सूर्य मकर राशि में तब होता प्रयागराज में।
जब ब्रहस्पति सिंह राशि व सूर्य मेष राशि में
तब होता उज्जैन में।
जब बृहस्पति व सूर्य दोनों मेष राशि में
तब होता नासिक में।
जब बृहस्पति कुंभ व सूर्य मेष राशि में
तब होता हरिद्वार में।
पर यह बारह वर्षों में ही क्यों आता?
क्योंकि बंधु ! बृहस्पति सूर्य का चक्कर बारह वर्षों में पूर्ण करता।
नागा साधु उसकी विशिष्टता को बढ़ाए
कठोर तपस्या और शारीरिक शक्ति से दिगंबर कहलाए।
आसान नहीं है जीवन इनका देना पड़ती कई परीक्षाएं
सत्रह श्रृंगार करके भक्ति रस में जीवन बिताए।
तीर्थों का राज ये कुंभ धर्म का ज्ञान लुटाए
आइए इसमें पवित्र स्नान करके पुण्य कमाए।
व्यर्थ की फूहड़ता और प्रभुत्व का ना करे प्रदर्शन
धार्मिक भाव से आराधना करो ना करो मनोरंजन।
कुछ लोग आस्था को खंडित कर धर्म की परवाह न कर
बेहूदी मीम और नग्न साध्वियों की वीडियो बनाकर
सनातन संस्कृति और परंपराओं की धज्जियां उड़ाकर
देश और समाज को विषाक्त कर रहे हैं
कुंठित सोच को बढ़ावा दे रहे हैं।
अनुरोध है, ऐसी वीभत्स उपद्रवों पर आपत्ति जताएं
महाकुंभ की पावन बेला को परंपराओं से निभाएं।
अन्यथा सनातन संस्कृति धर्म संकट में ना आ जाए।।

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