Photo by reza shayestehpour on Unsplash
जेठ की तपिश से, आलस्य का चढ़ा था खुमार
नव ऊर्जा, नई ताजगी लिए आई सावन की फुहार गुम हुई उदासी,
बोझिलता,छाई उत्साह की बहार।
बूंदों की कलरव ध्वनि, जैसे पछुआ गाए मल्हार
मिट्टी की सौंधी खुशबू,सांझ की शीतल ब्यार
हृदय को आनंदित कर,जीवन में बरसाए प्यार।
चमकती चांदनी, घुमड़ घुमड़ घटा घनघोर
सतरंगी छटा निराली, सन सन हवाओं का शोर
सजी लताएं, धरा ओढ़े हरी चादर चहुंओर
प्रफुलित मन नव उमंग,तरंग लिए नाचे जैसे मोर।
देख प्रकृति की सुंदरता,सावन लागे
चितचोर।।।