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थकी अंखियां रही पंथ निहार 
जाने कब मिलेगा सफलता का हार 
बदल सी गई मैं,बदल गया मेरा व्यवहार।
कर्तव्य पथ पर चलते बढ़ाई अपनी रफ्तार 
पर पीछे छूट गई स्वयं के सपनों की धार।
पत्नी बहू मां बनकर बना तो लिया परिवार
पर अपने पैरों पर खड़े होने का ठहर गया विचार।
अब तो उम्र भी हो गई चालीस पार 
आत्मनिर्भर बनाने का सपना ना होता साकार।
थकी अंखियां रही पंथ निहार 
जाने कब मिलेगा सफलता का हार।

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